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________________ 266 वर्ण, जाति और धर्म चण्ड चाण्डालका अहिंसावत स्वीकार अवन्ती देश में एकानसी नामकी एक नगरी थी। वहाँ चण्ड नामका एक चाण्डाल रहता था। वह प्रतिदिन सुरापान और माँसभक्षण करता था। एक बार उसके निवासस्थानके समीप दो चारण ऋद्धिधारी मुनि आये / युगल मुनिका आगमन सुन कर अनेक श्रावक उनकी वन्दना करने और धर्मोपदेश सुनने के लिए गये। कुतूहल वश चण्ड चाण्डाल भी वहाँ गया। सबके अन्तमें उसने प्रणाम करके अपने योग्य व्रतको याचना की। अवधिज्ञानसे उसकी अल्प आयु जानकर सुनन्दन मुनिराजने उसे अहिंसाव्रत लेनेका उपदेश दिया। व्रत लेकर चाण्डाल अपने घर आया और मर कर यक्षोंका सरदार हुआ। नाच-गानसे आजीविका करनेवाले गरीब किसान बालकोंका मुनिधर्म स्वीकारकाशी जनपदमें वाराणसी नामकी एक सुन्दर,नगरी है। वहाँ सुषेण नामका एक गरीब किसान रहता था। उसके चित्त और सम्भूत नामके दो पुत्र हुए / वे दोनों अपनी जाति और कुलको छोड़ कर तथा परदेशमें जाकर ब्राह्मण वेषमें गीत-नृत्य द्वारा अपनी आजीविका करने लगे। एक बार उनमें से सम्भूतने राजगृह नगरमें स्त्रीका वेष धारण कर मनोहर नृत्य किया। उसे देख कर वहाँका सुशर्मा पुरोहित मोहित हो गया। किन्तु बादमें उसे यह ज्ञात होने पर कि यह स्त्री न होकर पुरुष है, उसके साथ अपनी बहिन लक्ष्मीमतीका विवाह कर दिया / बहुत दिन तक तो यह रहस्य छिपा रहा, किन्तु बादमें वहाँ उनकी कुल और जाति प्रकट हो जाने पर वे दोनों भाई लजित हो वहाँ से पाटलीपुत्र चले गये और वहाँ रात्रिमें नृत्य द्वारा पुनः अपनी आजीविका करने लगे। कालान्तरमें वहाँ भी यह ज्ञात होने पर कि ये षुरुष हैं, स्त्री नहीं, वहाँ से चलकर वाराणसी आ गये 1. यशस्तिलकचम्पू आश्वास 7 पृ० 333 /
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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