________________ या बीमारी के कारण व्यक्ति प्रत्येक कार्य के प्रति असावधान हो जाता है , मूल्यांकन की शक्ति का नाश हो जाता है या उसमें मानसिक चिन्ता, निराशा एवं सन्देह की उत्पत्ति हो जाती है। यह हमारे व्यक्तित्व का केन्द्र बिन्दु है / ये चित्त-भ्रम या उन्मादों के कारण मस्तिष्क के अग्र प्रदेश में स्थित नाड़ी द्वारा पृष्ठ प्रदेश से थैलेमस तथा हाइपोथैलेमस पर पड़ने वाले प्रभाव हैं जहाँ पर निर्णयों को क्रियान्वित किया जाता है। छोटा मस्तिष्क . इसकी स्थिति मस्तिष्क के पृष्ठ एवं निम्न प्रदेश में है / यह सम्पूर्ण शरीर के स्नायुओं में स्थित केन्द्रीय नाड़ियों में अखण्ड नाड़ी-प्रभाव की धारा विद्यमान रखता है और इस तरह स्नायुओं को स्वस्थ बनाये रखता है। उपरोक्त क्रिया से स्नायुओं में उचित संकोचन बना रहता है / यह स्नायुओं की गतिविधि में भी सम्बन्ध स्थापित करता है तथा साथ ही सम्पूर्ण शरीर की मांसपेशियों की गति में एकरूपता लाता है। थैलेमस ' मेरुदण्ड के शीर्ष प्रदेश में तथा मस्तिष्क के मध्य में इसकी स्थिति है। यह सन्देश प्रसारण करने वाला केन्द्र है। यहाँ से सन्देश मस्तिष्क के उच्च प्रदेशों में भेजे जाते हैं। यह वह क्षेत्र भी है जहाँ चेतना पर प्रथम ज्ञान (protopathic sense ) की अनुभूति होती है। यह अपरिपक्व तथा प्राचीन प्रवृत्तियों का सूचक है जो उनके लक्षण, महत्व, अर्थ आदि का स्पष्टीकरण न करते हुए समस्त शरीरांगों के सुख-दुःख, की सूचना देता है। अपेक्षाकृत अधिक संवेदनात्मक संकेतों को परिपक्व ज्ञान (epicritic ) कहते हैं। ये अधिक लाक्षणिक होते हैं तथा सेरीब्रल कॉर्टेक्स में चेतना स्तर पर पहुँच जाते हैं। हाइपोथैलेमस थैलेमस का संबंध हाइपोथैलेमस से होता है। हमारी संवेदनात्मक स्थिति के लिये थैलेमस उसे नाड़ीय - प्रवाह प्रदान करता है / उच्च मस्तिष्क केन्दों के प्रभावों से मुक्त होकर जब हाइपोथैलेमस कार्य करता है, तब व्यक्ति क्रोधी, सुखी आदि बन जाता है जिसका कोई ज्ञात कारण नहीं होता। हाइपोथैलेमस के दो उपविभाग होते हैं - एक को पुरस्कार या सुख प्रदेश एवं दूसरे को दण्ड या दुःख क्षेत्र कहते हैं / प्रथम क्षेत्र अपेक्षाकृत बड़ा होता है / अनुकंपी एवं परानुकंपी तन्त्रिका तन्त्रों का प्राथमिक केन्द्र भी यही है / 384