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________________ तथा उन अंगों की रक्त-संचार क्रिया में तीव्रता आ जाती है जिन्हें अतिरिक्त रक्त की आवश्यकता होती है। हृदय एक सक्षम स्नायविक पिचकारी है / उसकी स्नायविक दीवारों पर स्थित रेशाओं पर उसकी क्षमता निर्भर होती है। कभी इसमें विकार होने पर इन रेशाओं द्वारा अभिसरण क्रिया में अद्भुत परिवर्तन किया जाता है। रक्त के आयतन एवं दाब पर अनेक बातों का प्रभाव पड़ता है। इसके अन्तर्गत हृदयद्वारों की अवस्था, नाड़ी संस्थान द्वारा आन्तरिक व्यास का नियन्त्रण या रक्त नलिकाओं के रन्ध्र प्रवाह में रक्त की मात्रा सम्मिलित है / ये सभी महत्वपूर्ण हैं परन्तु हृदय के स्नायुओं की स्थिति प्राथमिक रूप से सम्बन्धित है। ___ हृदय विकारों का सर्वसाधारण कारण विपरीत अवस्था एवं लापरवाही है। अनेक व्यक्ति अधिक भोजन ग्रहण करते हैं परन्त व्यायाम नहीं करते / कुछ अन्य व्यक्ति हमेशा संवेदनात्मक तनावों की स्थिति में रहते हैं तथा पर्याप्त. विश्राम नहीं लेते। ये दोनों परिस्थितियाँ शरीर को दुर्बल कर देती हैं तथा सामान्य रक्ताभिसरण में अवरोध उत्पन्न करती है। धमनियाँ (हृदय से केशिकाओं को रक्त पहुँचाने वाली सबसे बड़ी रक्त नलिका) कड़ी हो जाती हैं जिससे उनके लचीले पेशीजालों की दीवारों की नम्यता नष्ट हो जाती है / इससे धमनियों में सिकुड़न आ जाती है, रक्तचाप में वृद्धि हो जाती है; फलतः हृदय की क्रिया में वृद्धि होती है। शरीर के अन्य स्नायुओं की तुलना में इसकी कार्यक्षमता अधिक लम्बी अवधि तक बनी रहती है / यह अति आवश्यक भी है क्योंकि हृदय सबसे अधिक श्रम तथा मेहनत का कार्य करता है। ____ आंतरिक रूप से हृदय के चार विभाग होते हैं / रक्त फेफड़ों से आता है। इसमें प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन मिश्रित होती है जिसका विभाजन समस्त शरीर में किया जाता है / रक्त का प्रवेश बायें ग्राहक-कोष्ठ में होता है / यहाँ से वह बायें क्षेपक कोष्ठ में पहुँचता है / इसी पर अधिकांशतः रक्त-प्रबाह निर्भर है। बायें क्षेपक कोष्ठ के संकोचन के परिणामस्वरूप मध्यवर्ती पर्दा बन्द हो जाता है। इसी द्वार से बायें ग्राहक एवं क्षेपक कोष्ठों के मध्य सम्पर्क स्थापित होता है। इसी समय महाधमनी का द्वार खुल जाता है और इस प्रमुख धमनी से रक्त शरीर की अन्य धमनियों में पहुँच जाता है / शरीर की सभी प्रमुख धमनियाँ महाधमनी की ही शाखायें हैं / प्रमुख एवं सबसे बड़ी शाखायें हृदय-धमनियाँ कहलाती हैं। ये दो हैं / एक बायीं तथा दूसरी दाहिनी ओर रक्त प्रदान करती है / ये बहुत ही महत्व की हैं क्योंकि यदि 378
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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