________________ होते हैं जैसे-माल्टेज, सुक्रेज, लेक्टेज, न्यूक्लीएज, फास्फेटेज, इन्टराकेज आदि / छोटी आंत की भीतरी सतह मखमल की-सी दिखाई देती है / सूक्ष्मदर्शक यंत्र द्वारा दीवारों पर सूक्ष्म कक्ष (शोषण केन्द्र) दिखाई देते हैं। ये बाहर निकली हुई शाखायें हैं / इनमें अनेक रक्त नलिकायें होती हैं / इस प्रकार छोटी आँत अपने स्तर में वृद्धि करती है ताकि भोजन को सरलतापूर्वक शोषित कर सके तथा रक्त-प्रवाह के द्वारा उसे यकृत में पहुँचा सके। आँतों की दीवारों पर अनेक स्नायु होते हैं / आकुंचन-लहरी-नाड़ियों के . प्रभाव से इन्हें संकुचित तथा शिथिल किया जाता है। पाचन क्रिया के समय आकुंचन लहरी के कारण छोटी आंत में अविरल गतिशीलता बनी रहती है। फलतः आँत के भोजन में भी गति होती है और उसका संयोग अन्य पाचक रसों से होता है। छोटी आंत की लम्बाई 20 फुट से अधिक होती है / इसकी चौड़ाई बड़ी आँत की अपेक्षा कम होती है इसलिये इसे यह नाम दिया गया है। परिवर्तनकाल में भोजन इस आँत की पूरी लम्बाई में घूमता है / अंत में इस आँत की सामग्री एक विशेष द्वार (ileocacal valve) के द्वारा बड़ी, आँत में भेज दी जाती है / इस द्वार के कारण अन्न धीरे-धीरे बड़ी आंत में जाता है। इससे छोटी आँत जल्द ही रिक्त नहीं होती। बड़ी आंत की लम्बाई लगभग 5 फुट है। शरीर में द्रव का पुनर्शोषण करना ही इसका कार्य है। यह कार्य द्रव की भविष्य की उपयोगिता के लिए किया जाता है। बिना पचे हुये, अशोषित शेष त्याज्य पदार्थ को धीरे-धीरे गुदा में भेजा जाता है / मल रूप में इसका शरीर से निकास होता है। . अनेक यौगिक अभ्यासों द्वारा पाचन दोषों को दूर किया जा सकता है तथा आन्तरिक अंगों को स्वस्थ रखा जा सकता है / हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले भोजन का विभाजन निम्न चार भागों में किया जा सकता है(१) कार्बोज एवं चर्बी इनसे शरीर को आवश्यक शक्ति प्राप्त होती है / शक्ति का सबसे अधिक उपयोग ताप के रूप में होता है / इससे शारीरिक तापक्रम विधिवत् बना रहता 370