________________ मिलाने के लिये बहुत अधिक संकुचन क्रिया द्वारा इनके आकार-प्रकार में कई परिवर्तन होते हैं। * सबसे शक्तिशाली क्रिया जठर के पक्वाशय में खुलने के मार्ग (pylorus) के समीप होती है। इस पूरे प्रदेश में आकुंचन-लहरियाँ होती हैं और पाचन-क्रिया अविरल रूप से चलती रहती है। समय-समय पर द्वार (pyloric) खुल जाता है तथा द्रव रूप में परिवर्तित कुछ पदार्थ पक्वाशय में प्रवेश करते है। गैस्ट्रो-इन्टेस्टाइनल सिस्टम की ग्रंथियों द्वारा स्रावित रसों का मिश्रण पक्वाशय में प्रवेश किये गये पदार्थों में किया जाता है। इन ग्रंथियों में सर्वाधिक महत्व क्लोम का है जो आँतों को पाचक रस प्रदान करती है / इसकी स्थिति जठर के पृष्ठ भाग में है तथा यह पक्वाशय से लगभग पूरी तरह घिरी हुई है। इसका रस-स्राव छोटी नलिका के माध्यम से पक्वाशय में होता है। क्लोम रस में शक्तिशाली पाचक रस होता है जो हर प्रकार के भोजन तत्व, जीवन सत्व, चर्बी तथा कार्वोज को पचाने में समर्थ होता है। - शर्करा, स्टार्च व कार्बोज पदार्थों का विश्लेषण करने वाला क्लोमीय पाचक रस एमीलेस या डायेस्टेस कहलाता है। चर्बी को विभाजित करने वाला रंस लायपेज है जो पित्त के साथ संयुक्त रूप से कार्य करता है / ट्रिप्सिन जीवन सत्व को विभाजित करता है / जठर में भोजन के साथ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के अच्छी तरह मिश्रित हो जाने के उपरान्त ही क्लोम रस का कार्य ठीक होता है. इसके बिना नहीं। ...द्वितीय पाचक ग्रन्थि यकृत है। यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि है। इसके कार्य अनेक हैं / रक्त में अन्न के शोषित हो जाने के बाद ही यकृत का सम्बन्ध उससे होता है। यकृत में अधिकांश अन्न का संग्रह एवं परिवर्तन ग्लाइकोजेन के रूप में होता है। किसी अंग की आवश्यकतानुसार इसका परिवर्तन ग्लूकोज (blood sugar) में हो जाता है तथा उसे रक्त-प्रवाह में भेज दिया जाता है / यकृत स्वच्छ स्वर्णिम द्रव तैयार करता है जिसे पित्त कहते हैं। इसका संग्रह पित्ताशय में होता है जहाँ उसकी शक्ति में वृद्धि हो जाती है / इससे वह गहरे हरे रंग का हो जाता है / क्लोम रस लायपेज के साथ चर्बी के विभाजन के लिये महत्वपूर्ण है / यह आँतों की आकुंचन-लहरी को क्रियाशील बनाता है जिससे आँतों में भोजन की गतिशीलता बनी रहती है। - छोटी आंत की दीवारों पर बहुत सी छोटी ग्रन्थियाँ होती हैं। ये अग्रिम पाचन क्रिया के लिये पाचक रस उत्पन्न करती हैं। ये पाचक रस कई प्रकार के 369