________________ अतिरिक्त रक्त -प्रदान करती है। नारी जीवन पर इन रसों का बहुत प्रभाव पड़ता है। . 8. पायमस इसकी स्थिति हृदय - प्रदेश में है। यह स्पष्ट नहीं है कि इस ग्रंथि को अंतःस्रावी ग्रंथि-प्रणाली के अन्तर्गत क्यों सम्मिलित किया गया है। बच्चों में इसकी आकृति बड़ी होती है / यह विकास क्रिया में सहायक है / व्यक्ति के बड़े होने पर इसकी आकृति क्रमशः छोटी होती जाती है / पूर्ण विकसित व्यक्ति में यह बहुत छोटी होती है। यह शरीर को स्पर्शदोष से बचाव करने की शक्ति प्रदान करती है। योग द्वारा स्वस्थ अंतःस्रावी ग्रन्थि प्रणाली . इस पुस्तक में वर्णित विभिन्न यौगिक अभ्यास शरीर के विशेष प्रदेशों पर तनाव एवं दबाव डालते हैं / इससे अंगों से संबंधित नाड़ियों की स्वास्थ्य - रक्षा होती है तथा उन्हें पुनः शक्ति की प्राप्ति होती है / यही प्रभाव अंतःस्रावी ग्रंथियों पर भी पड़ता है। शरीरांगों की मालिश होती है, फलतः इन ग्रंथियों सहित वे स्वस्थ अवस्था में रहते हैं। नाड़ी शोधन आदि कुछ प्राणायाम क्रमशः परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र तथा अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र को सक्रिय बनाते एवं उन पर नियंत्रण रखते हैं। अतः इन नाड़ियों से संबंधित अंतःस्रावी ग्रंथियाँ स्वतः शिथिल एवं क्रियाशील हो जाती हैं। ये ग्रंथियाँ सदैव बहुत सक्रिय रहती हैं। उन्हें योगाभ्यास आवश्यक विश्रान्ति प्रदान करता है / तदुपरान्त उनकी क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। .. हठयोग की शंखप्रक्षालन क्रिया में इन ग्रंथियों को पर्याप्त विश्राम मिलता है। पूर्ण अन्ननलिका की सफाई हो जाने के उपरान्त अधिकांश अंतःस्रावी ग्रंथियों को, विशेषकर पाचन एवं चयापचय से संबंधित ग्रंथियों को भोजन ग्रहण करने से पूर्व 45 मिनट तक आराम मिलता है / इस विश्रान्ति का बहुत ही अच्छा प्रभाव इन ग्रंथियों, पाचन - संस्थान और सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है / मधुमेह आदि में इसका आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है / वर्षों पूर्व की निष्क्रिय ग्रंथियाँ भी सक्रिय हो जाती हैं / सिर के बल किये जाने वाले आसन विशेषकर शीर्षासन का इन ग्रंथियों के कार्यों पर सुप्रभाव पड़ता है / ये क्रियायें शीर्षस्थ ग्रंथि पर प्रभाव डालती हैं। इससे हाइपोथैलेमस से रक्त का बहाव शीर्षस्थ ग्रंथि में प्रचुर मात्रा में होता है जिससे इसमें सन्तुलन आता है। . 367