________________ है। इसे सहस्र दलों वाले चमकीले कमल पुष्प के रूप में दृष्टिगत किया जा सकता है / दलों पर संस्कृत के समस्त वर्ण अंकित हैं / सम्मिलित रूप से इसमें सम्पूर्ण शक्तियाँ निहित हैं जिनका सम्बन्ध पचास बीज मंत्र की शक्ति के बीस गुणक से है। कमल के केन्द्र-स्थल पर उज्ज्वल शिवलिंग है जो पवित्र चेतना (शिव) का प्रतीक है। यह वही स्थल है जहाँ शिव-शक्ति का आश्चर्यजनक योग, चेतना का तत्व एवं शक्ति से संयोग तथा व्यक्तिगत आत्मा का असीम आत्मा से मिलन होता है। योग और तंत्र-दर्शन के अनुसार ब्रह्माण्ड की सृष्टि इन्हीं शक्तियों के विच्छेदन से हुई है। सत्यतः इन दोनों शक्तियों की मूलवस्तु एक - ही है। चेतना स्थिर शक्ति तथा प्रकृति क्रियात्मक शक्ति है। सर्वप्रथम प्रकृति तीन विभागों या गुणों में विभाजित होती है। ये हैं - तमस् (जड़ता, आलस्य), रजस (क्रियाशीलता, शक्ति) और सत्व (समतुल्य, संतुलन, शांति)। हमारे मन तथा शरीर से लेकर सूर्य तथा तारों और संपूर्ण सृष्टि में ये तीन शक्तियाँ व्याप्त हो जाती हैं / इन तीन गुणों से प्रकृति के आठ तत्व विकसित होते हैं जिनकी सूची दी जा चुकी है। विकास क्रिया सूक्ष्म तत्व से स्थूल तत्व की ओर होती है। उदाहरणार्थ- बुद्धि, अहंकार इत्यादि से अग्नि, जल व पृथ्वी की ओर | पृथ्वी सर्वाधिक स्थूल तत्व है, अतः यहाँ इस क्रिया का अंत हो जाता है / निम्नतम उत्पत्ति के उपरान्त निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। इस प्रकार निम्न प्रदेशों में स्थित पाँच चक्र स्थूल तत्व हैं / आज्ञा चक्र सूक्ष्म तत्व है तथा उच्चतम केन्द्र 'सहस्रार' शुद्ध चेतना तथा सर्वोन्नत है। जागृति के उपरान्त कुण्डलिनी सब चक्रों में से होती हुई सहस्रार पर पहुँचती है तथा उसी स्रोत में उसका विलीनीकरण हो जाता है जहाँ से उसकी उत्पत्ति हुई थी। नाड़ी ___नाड़ी का शाब्दिक अर्थ धारा या प्रवाह है। प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार आत्मिक शरीर में 72 हजार नाड़ियाँ हैं। आत्म - दृष्टि-प्राप्ति के उपरान्त व्यक्ति इन्हें प्रकाशधारा के रूप में देख सकता है। वर्तमान समय में 'नाड़ी' शब्द का रूपान्तरण 'नस या तंत्रिका' शब्द में किया गया है। यह शब्द उपयुक्त नहीं है क्योंकि नाड़ी की रचना सूक्ष्म तत्वों से होती है और सत्यतः ये नसें नहीं हैं। चक्रों की भाँति इनकी स्थिति भौतिक शरीर में नहीं है / भौतिक 356