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________________ बस्ति एवं कपालभाति बस्ति- इस क्रिया की निम्नांकित दो विधियाँ हैं - (1) जल बस्ति - (यौगिक एनिमा) नाभि तक पानी में खड़े हो जाइये / बहती नदी आदर्श स्थान है। सामने झुकिये। हाथों को घुटनों पर रखिये। गुदाद्वार के संकोचक स्नायुओं का विस्तार कीजिये; साथ ही उड्डियान बंध लगाकर नौलि क्रिया इस प्रकार कीजिये कि पानी गुदाद्वार से ऊपर को चढ़े / आँत में कुछ समय तक पानी को रोकिये, तत्पश्चात् उसी मार्ग से बाहर निकालिये। इसमें अश्विनी मुद्रा का अभ्यास भी कर सकते हैं। . लाभ बड़ी आँत की शुद्धि होती है तथा वायु एवं मल का निकास होता है। रक्त - शुद्धता में वृद्धि होती है। प्राणायाम के उच्च अभ्यासी इस क्रिया का अभ्यास ताप को न्यून करने के लिए करते हैं। टिप्पणी अभ्यास को सरल बनाने के लिए प्रारम्भिक अभ्यासी एक छोटी नली को गुदाद्वार से भीतर डाल कर अभ्यास कर सकते हैं। योग शिक्षक के निर्देशन में ही इस क्रिया का अभ्यास करना चाहिए / (2) स्थल बस्ति - (शुष्क बस्ति) पश्चिमोत्तानासन का अंतिम. अभ्यास कीजिये / गुदाद्वार से आँतों में पच्चीस बार वायु खींचते हुए अश्विनी मुद्रा कीजिये / कुछ देर वायु को रीकिये / पुनः गुदाद्वार से उसका निकास कीजिये / 'अश्विनी मुद्रा की भाँति ही हैं। कपालभाति- इसकी निम्नांकित तीन विधियाँ हैं - (1) वातक्रम कपालभाति .. कपालभाति प्राणायाम की-सी विधि है / (2) व्युतक्रम कपालभाति नासिका से जल भीतर खींच कर उसे मुँह से निकालते हैं। (3) शीतक्रम कपालभाति इसमें मुँह से जल पीकर उसका निष्कासन नासिका से किया जाता है। ___यह अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से जलनेति के समस्त लाभ प्रदान करता है / मात 347
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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