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________________ सीमाएँ उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, पेट या आमाशय में नासूर हो जाने पर . अभ्यास वर्जित है। लाभ यकृत की न्यून क्रियाशीलता, वायु, अजीर्ण आदि उदर एवं जठर के रोगों का निवारण करता है। सभी उदरस्थ अंगों को क्रियाशील बनाता एवं जठराग्नि को तीव्र करता है। इद् धौति यह क्रिया हृदय प्रदेश में स्थित अंगों के शुद्धिकरण की है। इसके निम्नांकित उपखण्ड किये गये हैं - (1) दंड धौति इस क्रिया में विशेष रूप से तैयार की गयी बेंत से श्वास-नली तथा गले से जठर तक अन्न नलिका की सफाई की जाती है। अधिकतर केले के पौधे के मध्य स्थित पतले दंड का प्रयोग किया जाता है। इसका व्यास आधा इंच और लम्बाई दो फुट होनी चाहिए / इसे धीरे - धीरे गले में से होते हुए जठर तक पहुँचाया जाता है / तत्पश्चात् उसे बाहर निकाल लेते हैं / इस अभ्यास से श्लेष्मा, कफ, अम्लता तथा श्वास नलिका के सामान्य दोषों का निवारण होता है। (2) वस्त्र पौति विधि इस क्रिया में विशेष रूप से तैयार किये गये दो इंच चौड़े एवं कुछ फुट लंबे सूती कपड़े द्वारा श्वास - नलिका एवं जठर की सफाई की जाती है | इसके एक सिरे को मुँह में डालकर अन्न की भाँति लार मिश्रित करते हुए धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक निगलते जाइये / दूसरा सिरा मुँह के बाहर रखे हुए इतना वस्त्र निगल जाइये कि प्रथम सिरा जठर तक पहुँच जाये / उच्च अभ्यासी इस अवस्था में नौलि क्रिया कर सकते हैं। 20 मिनट के उपरांत वस्त्र को बाहर निकाल लीजिये / सावधानी 341
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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