________________ क्रम कठिनाई का कारण यह है कि श्लेष्मा झिल्ली को पानी के साथ सम्पर्क करने का अभ्यास नहीं होता है। जल नेति के कुछ दिनों के अभ्यास के उपरान्त यह संवेदना शेष नहीं रह जायेगी। प्रारम्भ के कुछ दिनों तक अभ्यास के उपरांत आँखों में भी लालिमा आ सकती है। बाद में यह तकलीफ भी समाप्त हो जायेगी। प्रतिदिन प्रातः या जुकाम की अवस्था में / सावधानी जल का प्रवाह सिर्फ नासिका में से होना चाहिए / यदि गले या मुँह में. जल का प्रवेश हो जाये तो समझिये कि सिर की स्थिति सही नहीं है / अतः सिर की स्थिति में इस भाँति सधार कीजिये कि पानी का बहाव नासिका में ही हो / यदि समस्या का निवारण न कर सकें तो किसी योग शिक्षक से सलाह लीजिये। जल नेति के उपरान्त नासिका को पूर्णतः शुष्क कर लीजिये, अन्यथा उसमें उत्तेजना उत्पन्न हो जायेगी तथा जुकाम के कष्टप्रद लक्षण दिखाई देने लगेंगे। जल नेति का उद्देश्य नासिका - प्रदेश को स्वास्थ्य प्रदान करना है; अतः अधिक बलपूर्वक रेचक क्रिया द्वारा उसे चोट न पहुँचाइये। नासिका से रक्त - स्राव की दीर्घकालीन बीमारी की अवस्था में योग्य निर्देशक की सलाह के बिना नेति का अभ्यास न कीजिये / लाभ ''यह अभ्यास नासिका की अशुद्धियों व जीवाणु - पूरित श्लेष्मा का निष्कासन करता है / जुकाम एवं वायु - रन्ध्र दोष (sinusitis) के उपचार में मदद करता है / कान, आँख. तथा गले की अनेक बीमारियों जैसे - अनेक प्रकार के बहरेपन, ह्रस्व दृष्टि दोष, गले की कौड़ी का बढ़ना, श्लेष्मा झिल्ली तथा एडिनॉयड की वृद्धि आदि दोषों के निवारण में मदद करता है। मिर्गी या अपस्मार, उन्माद, विक्षेप, अत्यधिक सिर दर्द, अनियंत्रित क्रोध आदि विकारों पर अच्छा प्रभाव डालता है / सुस्ती दूर कर ताजगी लाता है जिससे शरीर तथा मस्तिष्क में हल्कापन आता है। श्वास - रन्ध्र के ऊपर स्थित गंध - पिण्डों को उत्तेजित करते हुए आज्ञा चक्र के जागरण में सहायक है। सीमाएँ 332