________________ पवनमुक्तासन पवन का अर्थ वायु, मुक्त का अर्थ छुटकारा एवं आसन का अर्थ शरीर की एक विशेष स्थिति है / अतः पवनमुक्तासन ऐसे अभ्यासों का समूह है जो शरीर से वात निकालने में मदद करते हैं। अभ्यास के इस क्रम को प्रतिदिन आसन - कार्यक्रम के प्रारम्भ में जोड़ों को ढीला एवं मांसपेशियों को लचीला करने के लिये किया जाना चाहिये / ये नये अभ्यासियों, दुर्बल, बीमार, हृदय के रोगियों, उच्च रक्त - चाप वालों एवं उन व्यक्तियों के लिये है जिनका शरीर अन्य आसनों के लिये कड़ा और बेलोचदार है। -- पवनमुक्तासन का समूह बड़ा सरल है फिर भी वे शरीर के कफ, पित्त और वात को नियमित करने में बड़े प्रभावशाली हैं। हमारा मतलब पेट व आँतों में बनने वाली वायु ही नहीं है बल्कि वह वाय भी है जो शरीर के प्रत्येक जोड़ में बनती है। क्योकि शरीर में गलत रासायनिक प्रतिक्रियाओं के कारण गठिया का दर्द और कड़ापन प्रारम्भ हो जाता है / अम्ल व पित्त से मतलब पाचन में सहायक रसों से ही नहीं, बल्कि 'यूरिक अम्ल' से भी है जिसे शरीर से निरन्तर निकलते रहना चाहिये / अधिक अम्ल बनने से शरीर के कुछ अंगों में ठीक ढंग से कार्य करने में अवरोध उत्पन्न होने लगता . पवनमुक्तासन का अभ्यास शरीर से वायु और अम्ल निकालने में सहायक सिद्ध होगा; विशेषतः जोड़ों से / ये अभ्यास अशक्त, दुर्बल, बीमारी के बाद स्वास्थ्य - लाभ चाहने वालों एवं उन लोगों के लिये उपयोगी हैं जिन्हें अपने शरीर व उसके विभिन्न अंगों को हिलाने - डुलाने में कठिनाई होती है। बीमारी और लम्बे विश्राम के बाद मांसपेशियों को नये सिरे से काम करने की आदत डालने के लिये इन अभ्यासों को किया जा सकता है। मांसपेशियों के सभी प्रकार के रोगों से छुटकारा दिलाने में भी ये प्रभावशाली हैं। पवनमुक्तासन के क्रम को दो प्रमुख समूहों में विभाजित किया गया है- गठिया निरोधक समूह और वायु (वात) निरोधक समूह / इन दोनों समूहों को पुस्तक में दिये गये क्रमानुसार करना चाहिए / 17