________________ ज्ञान मुद्रा और चिन्मुद्रा ज्ञान मुद्रा ज्ञान मुद्रा विधि ध्यान के किसी एक आसन में बैठ जाइये / दोनों हाथों की तर्जनियों को इस प्रकार मोड़िये कि उनका स्पर्श अंगूठों के आधार से हो। शेष तीन अंगुलियों को एक-दूसरे से कुछ दूरी पर फैलाये रखिये। हाथों को घुटनों पर रखिये / हथेलियों का रुख नीचे की ओर रहे। अंगूठों एवं अन्य तीन अंगुलियों (बिना मुड़ी हुई) की दिशा घुटनों के . सामने भूमि की ओर रहे। विन्मुद्रा विधि पूर्ण अभ्यास ज्ञान मुद्रा की भाँति ही है, अंतर इतना है कि हथेलियाँ घटनों पर ऊपर की ओर खुली हुई रहें। समय किसी भी आसन में ध्यान-काल में उपरोक्त किसी एक मुद्रा में हाथों की स्थिति होनी चाहिए। लाभ नाड़ियों के प्रवाह की दिशा को हाथ से विपरीत करते हुए यह अभ्यास स्थिर अवस्था में लम्बी अवधि तक रहने की क्षमता प्रदान करता है। अंगूठे और तर्जनी का योग और मध्यमा, अनामिका व कनिष्ठिका का अलगाव त्रिगुण पर जीव- ब्रह्म - ऐक्य का संकेत है। 300