________________ प्राणायाम के साथ बन्धों के समन्वय की विधियों का वर्णन उनके अध्यायों में वर्णित है। बन्धों के अभ्यासी को श्वास रोकने की आवश्यकता पड़ती है। स्वाभाविकतः प्रारम्भ में कुम्भक की अवधि कम रहेगी, परन्तु अभ्यासी की क्षमता के अनुपात से क्रमशः यह अवधि बढ़ाई जानी चाहिए / कुंभक बहिरंग या अंतरंग हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि दीर्घ रेचक या अधिक से अधिक लम्बा पूरक करके फेफड़ों के कार्य को रोका जा सकता है। कुम्भक बन्ध एवं प्राणायाम का अनिवार्य अंग है। अभ्यासी को शनैः शनैः कुम्भक लगाने की क्षमता बढ़ाने की सलाह दी जाती है। कुछ हफ्तों या महीनों के उपरान्त कुम्भक की अवधि फेफड़ों पर बिना तनाव डाले बढ़ानी चाहिए। 287