________________ उज्जायी प्राणायाम विधि खेचरी मुद्रा लगाइये अर्थात् जिह्वा को मुँह में पीछे की ओर इस भाँति मोड़िये कि उसके अग्र प्रदेश का स्पर्श ऊपरी तालु से हो। अब गले में स्थित स्वर - यन्त्र को संकुचित करते हुए श्वसन कीजिये / श्वास - क्रिया गहरी, धीमी हो तथा छोटे बच्चे के कोमल खरटि की भाँति / उसकी आवाज होनी चाहिए। इस समय ऐसा अनुभव करना चाहिए कि श्वसन - क्रिया नासिका से नहीं, वरन् सिर्फ गले से हो रही है। किसी भी आसन में इसका अभ्यास किया जा सकता है। उदाहरणार्थअनेक मुद्राओं में इसका अभ्यास किया जाता है। अजपाजप आदि कई ध्यान की प्रक्रियाओं में भी अभ्यास किया जाता है। समय इसका अभ्यास कई घंटों तक किया जा सकता है। लाभ सरल होते हुए भी सम्पूर्ण शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालता है। नाड़ी-संस्थान पर अच्छा प्रभाव डालता है। मन को चिंताओं से मुक्त कर शांत करता है। अनिद्रा के रोगी को इसका अभ्यास शवासन में बिना खेचरी मुद्रा के करना चाहिए। हृदय की धड़कन न्यून करता है, इसलिए उच्च रक्तचाप की अवस्था में लाभप्रद है। आत्मिक स्तर पर सूक्ष्म प्रभाव डालता है। इसलिए ध्यान के अभ्यास के लिए अत्युत्तम क्रिया है। 282