________________ यदि सामान्य श्वसन-क्रिया करते हुए अभ्यासी अधिक देर तक अभ्यास करना चाहता हो तो उसे तभी तक अभ्यास करना चाहिये जब तक कि स्नायुओं पर किसी प्रकार का तनाव न पड़े। एकाग्रता - आध्यात्मिक : मणिपुर चक्र पर / शारीरिक : पूर्णावस्था में संतुलन पर | क्रम अशुद्ध रक्त वाले लोग आसन -सत्र के अन्त में इसका अभ्यास करें / इस आसन के उपरान्त सिर के बल किए जाने वाले आसनों का अभ्यास निश्चित रूप से नहीं किया जाना चाहिये / ' सीमाएँ उच्च रक्तचाप, हर्निया या जठर में घाव वाले व्यक्तियों को इसका अभ्यास : नहीं करना चाहिये। लाभ शरीर की चयापचय - क्रिया को प्रेरित करता है। अतः शरीर के विभिन्न अंगों में रस स्राव में वृद्धि होती है / अन्न नलिका तथा आँतों को त्याज्य पदार्थों से रिक्त करता है। रक्त से विषैले पदार्थों को दूर कर उसका शुद्धिकरण करता है / इससे चर्म रोग, फोड़े आदि दूर करने में मदद मिलती है। उदर - विकारों में इसके अभ्यास की सलाह दी जाती है। मधुमेह के रोगी को इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिये / यदि विषैले तत्त्वों को दूर करने के लिये इस आसन के अभ्यास की सलाह दी जाये तो निम्न विधि से शरीर को तैयार करना चाहिये१. दूध, चर्बीयुक्त पदार्थ, मांस तथा देर से पचने वाले अन्य भोज्य पदार्थों का त्याग कीजिये / मसाले का उपयोग बंद कर दीजिये। 2. एक माह तक साग, फल, हरी-सब्जी, चावल आदि सामान्य भोजन ग्रहण कीजिये। 246