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________________ तनाव के आराम की स्थिति में इस अंतिम अवस्था में कुछ देर रुकिये। तत्पश्चात् धीरे - धीरे सिर को सामान्य स्थिति में ले आइये / दूसरे पैर से यही क्रिया दुहराइये / श्वास शरीर को मोड़ते समय रेचक / पूर्णावस्था में सामान्य श्वास एवं सामने लौटते समय पूरक / .. समय शरीर के प्रत्येक ओर सुखदायक अवधि तक अंतिम स्थिति में रुकिये। साधारण स्वास्थ्य लाभ के लिये डेढ़ मिनट का अभ्यास पर्याप्त है। एकाग्रता भ्रूमध्य, पीठ के शिथिलीकरण, निम्न उदर या श्वसन पर। टिप्पणी महान् योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर इस आसन का नामकरण हुआ है जो इस आसन में घंटों ध्यान किया करते थे / मेरुदण्ड को मोड़कर किये जाने वाले आसनों के मध्यम वर्ग में वर्णित अर्ध मत्स्येन्द्रासन की यह . पूर्णावस्था है। लाभ अधिक प्रभावशाली रूप में वही लाभ हैं जो अर्ध मत्स्येन्द्रासन के हैं / पृष्ठ प्रदेश की मांसपेशियों को लचीला व मेरुदण्ड की संधियों, कशेरुकाओं का कड़ापन दूर कर तंतुओं को तनावरहित करता है / ग्रीवा प्रदेश में एकत्रित रक्त पर दबाव डाल उसमें बहाब उत्पन्न करता है तथा उससे संबंधित नाड़ियों को शक्ति प्रदान करता है। उदर -प्रदेश की सभी बीमारियों के उपचार के लिये लाभप्रद आसन है। इससे अपचन तथा मधुमेह आदि का निवारण होता है। उपवृक्क ग्रंथि के रक्तस्राव को नियमित करता है। कमर-दर्द व वात-रोग दूर करता है / साथ ही गर्दन, सिर तथा पीठ के दर्द से मुक्ति दिलाता है। पैरों के स्नायुओं को नरम करता है तथा संधियों का कड़ापन दूर करता है। 240
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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