________________ मूर्षासन प्रथम अवस्था . द्वितीय अवस्था मूर्यासन विधि दोनों पैरों को 3 या 4 फुट की दूरी पर रखकर खड़े हो जाइये / शरीर को नितम्बों से सामने की ओर झकाइये / पैरों के समीप दोनों हाथों को रखिये। दोनों हाथों के मध्य भूमि पर सिर का शीर्ष प्रदेश टिका रहेगा (प्रथम अवस्था)। हाथों को उठाकर पीठ पर बाँधकर रखिये / एड़ियों को ऊपर उठाइये / सम्पूर्ण शरीर सिर एवं पैरों की अंगुलियों पर सन्तुलित रहेगा। (द्वितीय अवस्था)। कुछ देर इस अन्तिम अवस्था में रहिये। प्रारम्भिक स्थिति में लौट आइये / दो या तीन बार कीजिए। श्वास अन्तिम स्थिति में तथा पूर्व स्थिति में लौटते समय अन्तर्कुम्भक / सन्तुलित अवस्था में श्वसन क्रिया सामान्य रहेगी। . .. एकाग्रता आध्यात्मिक : सहस्रार चक्र पर। शारीरिक एवं मानसिक : श्वसन एवं सन्तुलन पर | लाभ मस्तिष्क में उचित मात्रा में रक्त का संचार करता है। सिर को सम्पूर्ण शरीर का भार वहन करने एवं मस्तिष्क को अतिरिक्त रक्त-संचार के लिए प्रशिक्षित करता है। ... 190