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________________ (2) कठिन व्यायाम के तुरंत बाद इनका अभ्यास न कीजिये / कम से कम आधा घण्टा रुकिये ताकि रक्त के विषाक्त द्रव का निष्कासन मांसपेशियों से पूर्णतः हो जाये। (3) रक्त को अशुद्ध करने वाली बीमारी में अभ्यास न किया जाये / रक्त - शुद्धिकरण तक अभ्यास वर्जित है / रक्त की शुद्धता का पता लगाने के लिए डॉक्टर या योग शिक्षक की सहायता लीजिये। . अभ्यास - स्थान के समीप कोई ऐसी वस्तु न रहे जिससे अभ्यासी को किसी प्रकार की चोट लगने की सम्भावना हो | अभ्यास करते समय यदि अभ्यासी सामने या पीछे की ओर गिरता हो तो उसे शरीरं को शिथिल कर देना चाहिए तथा पैरों के सहारे शरीर को साधना चाहिए | बिना किसी कठिनाई के आसन करने में समर्थ होने पर प्रारम्भिक अवस्था में आसन की अन्तिम स्थिति में कुछ सेकेण्ड के लिए. ही रहना चाहिए / धीरे-धीरे प्रतिदिन अवधि को कुछ सेकेण्ड बढ़ाते जाइये। उतना ही समय बढ़ाइये जितना आपके लिए व्यक्तिगत रूप से लाभप्रद है। व्यक्तिगत अन्तर के साथ आसनों की अवधि में भी भिन्नता होती है। (6) यदि विशेष आसन के अभ्यास से आपको कुछ असुविधा का अनुभव हो तो उस समय तुरन्त ही उस आसन का अभ्यास त्याग दीजिए। (7) चटाई, नरम गद्दे या तकिये पर इन आसनों का अभ्यास कीजिए / पर्याप्त मोटे कम्बल को मोड़कर उस पर अभ्यास कीजिये ताकि गर्दन या सिर में किसी प्रकार की चोट न आने पाये / आसनों का अभ्यास धीरे-धीरे बिना किसी तनाव के कीजिये। (9) इन आसनों के पश्चात् शवासन में तब तक आराम कीजिये, जब तक कि श्वास की गति सामान्य न हो जाये। 188
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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