________________ कर्मस्तवभाष्यम् . [ 53 आहारदुंग खिप्पइ, र पमत्तविरयम्मि जेण तस्सुदओ।। तित्थयरं केवलिणो. उदीर' होइ एमेव // 11 // 11 / / 2 नवरं / पमत्तविरए, पयडीओ तिन्नि चेव खिप्पंति / 2 केवलिउदया चित्तु, तम्मि य ताओऽवि धक्कति // 12 // 12 मीसं उदयइ मीसे, सम्मत्त'. चंउसु अविस्याईसु / / आहारं : च पमत्त, जोगिजिणिदमि तित्थयरं // 13 // सत्तरसुत्तस्मगुत्तरं च चउहत्तरी यः सगसयरी / / / सत्तडीः तिगसट्ठी, उणसट्ठी अट्ठवन्ना. य // 14 // 17 // निद्ददुगे , छप्पन्ना, छब्बीसा नामतीसविस्यमि / / हांसरइभयदुगु छाविरमे बावीसऽपुव्वम्मि || 15 / / 18 // बुवेथकोहमाइसु, : अबज्झमाणेसुः पंच / ठाणाई / / बायरसुहुमे सत्तरपगईओ सायमियरेसु // 16 // 19 // उदयसङख्यांमाहसत्तरसं एक्कारं, : सयमेगः चउहि संजुयं सम्मे / / सत्तासी एकासी, छसारि बिसत्तरि छसट्ठी // 17 // 20 // सट्ठी उणसट्ठी वि य, सगवन्न बियाल बारसं उदए / / मिच्छाइ जा पमत्तो, उईरणा उदयसरिसाओ // 18 // 21 // तेहत्तरि गुणहत्तरि, तेवट्ठी सत्तवन्न छप्पन्ना। बउपन्ना इगुयाला, अपमत्ताओ उईरणया / / 19 / / 22 // जावः पमत्तो * संत्तद्वउईरगो वेयआउवज्जाणं। / सुहुमो मोहेण य जाव खीणतप्परउ नामगोयाणं // 20 // मिच्छे सासण अविरय देस पमत्तापमत्त'. सत्तट्ठ / / मीस नियट्टिऽनियट्टि य, सग सुहुने छच्च बंधकमाः // 21 / एगविहबंध ' सेसा, उदओ तिसु ठाणगेसु अट्ठण्हं / / एगविहबंधठाणे, सत्त / य चउरो य वेयंतिः // 22 // मिच्छे अडयालसयं, सासणमीसेसु तित्थयरहीणं / / सत्तयरहियं 'चउसु अडतीसं दोसु संतमि / / 23 // 23 // १०णा उदयसरिसाओ;' इति / 2 एषा गाथा त्रयोविंशतिगाथात्मके भाष्ये नास्ति ततो द्वादशी गाथाङ्कस्त्रयोदशस्थाने / एवमग्रेऽपि न्यूनः कार्यः // ३“पयडोओ तत्थ तिन्नि खिप्पंति' इति / 4 "ता चेव वकं ति" इति / 5 “सत्तठुईर"० इत्यपि पाठः सम्भाव्यते। 6 “चउसु वि" इति /