________________ 14] कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः बलवं रोगविउत्तो, वयसंपण्णो वि जस्स उदएणं / विरिएण होइ हीणो, वीरियविग्धं तु पंचमयं // 166 // एवं पंच'वियप्पं, अट्ठमयं अंतराइयं होइ / भणिओ कम्मविवागो, समासओ गग्गरिसिणा उ // 167 // एयं गाहाण सयं, अहियं छावट्ठिए उ पढिऊणं / जो गुरु पुच्छइ नाही, कम्मविवागं च सो अइरा / / 168 // // इति महर्षिगर्गपिप्रणीतः कर्मविपाकनामा प्रथमः कर्मग्रन्थः // Reserterestressettesenterseerence 1 "०विगप्पं” इत्यपि / 2 'तु” इति पाठः।