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________________ योगस्थानादिसप्तपदार्शल्पबहुत्व-क्षेत्र सूक्ष्मत्व-सूची श्रेणि-प्रतर-प्रकृतिभेदादिकथनम् [41 जत्तिया आगासपएसा तत्तियाणि जोगठाणाणि सव्वाणि वि / / 113 // 117 / / दारं / पयडीउ असंखिज्जा जं योहिदुगे वि तारतम्मेणां / अस्संखलोगखपएसपमाणा हुंति किल भेया॥११४॥११८॥ "जोगो हि जीवविरियं, तं भेया होति फुडमसंखेज्जा / तत्तो वि पगडिभेया असंखगुणिया विणिहिट्ठा / जम्हा ओहिविस भो उक्कोसो सम्वबहुयसिहिसूई / जेत्तिअमेत्तं फुसइ तेत्तियमेत्तप्पएसममा / तत्तारतम्मभेया जेण बहू होंति आवरणजणिया / तेणासंखगुणत्तं पयडीणं जोगओ जाण / " उक्तंच-"सव्वबहुअगणिजीवा निरंतरं जत्तियं भवेज्जासु। खेत्तं सव्वदिस गं परमोहीखेत्तनिहिट्ठा / / " // 114 // 118 / / दारं / श्रा जिठिई हस्सट्टिईउ समउत्तरा ठिईटाणा / सव्वपयडीसु एवं सम्बजियाणां, पि ठिइभेया // 115 // 11 // कहं ? एक्केक्काए पगईए जहण्णीउ आढवेत्तु, ताए जाव उक्कोसिया ठीई / एएसिं मज्झे जत्तियाणि तारतम्मजोगेण समउत्तरवद्रियाणि ठीठाणाणि, ताणि पगइसमूहेहिंतो असंखेज्जगुणाणि / एक्केक्कम्मि असंखेया भेया लब्भंति त्ति काउं / / 115 / / 11 / / दारं / ठिइठाणे ठिठाणे कसायउदया असंखलोगसमा / अणुभागबंधठाणा इय इक्केक्के कसाउदए // 116 // 120 // नाणावरणीयस्स जहनियाए ठीईए ठीइनिव्वत्तगा कसायउदयभेया असंखेज्जाण लोयाणं जत्तिया आगासपएसा तत्तिया / बीयाए ठीईए ठीनिव्वत्तगा कसायउदयभेया असंखेजाणं लोयाणं जत्तिया आगासापएसा तत्तिया / पुव्वेहितो विसेसहिया / तइयाए ठीईए ठीनिव्वत्तगा कसाउदयभेया असंखेज्जाणं लोयाणं जत्तियागासपएमा तत्तिया / पुव्वेहितो विसेसहिया / एवं ठीईए ठीईए निव्वत्तगा नाणावरणीयस्स जाव उक्कोसियाए ठीए ठीनिव्वत्तगा कसाउदयभेया असंखेज्जाणं लोयाणं जत्तिया आगासपएसा तत्तियाः कमसो विसेसाहिया। एवं सब्बकम्माणं सव्वपयडीणं जहण्णठीइं आई काऊण समउत्तराए सम उत्तराए जाव उवकोसियठीईए ठीनिव्वत्तगा कसायउदयभेया असंखेज्जाणं लोयाणं जत्तिया आगासपएसा तत्तिया कमसो विसेसाहिया। नवरं आउयस्स ठीए ठीए असंखेज्जगुणा / एवं ठीएहितो ठीबंधज्झवसाया असंखेज्जगुणा ।।दा।। . "अणुभागबंधठाणा इय एक्केक्क कसाउदए"ति, नाणावरणीयस्स जहण्णट्ठीनिव्वत्तगो जो सव्वजहण्णो कसाउदओ। तत्थ अणुभागबंधट्ठाणा असंखेज्जाणं लोयाणं जत्तिया आगासपएसा तत्तिया / बीइए कसायउदए अणुभागबंधट्ठाणा असंखेज्जाणं लोयाणं जत्तिया आगासपएसा तत्तिया। तइए कसाओदए असंखेज्जाणं लोयाणं जत्तियं आगासपएसमाणं तत्तिया। एवं जहण्णट्ठीनिव्वत्तगाणं कम्मेण कसाउदयभेयाणं जाव उक्कोसओ कसायउदयभेओ / तत्थ
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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