________________ कर्मप्रकृत्युत्तरभेदनिरूपणम् -समचउरंसं नग्गोहसाइखुज्जाणि वामणं हुंडं / संठाणा वन्ना किन्हीललोहियहलिदसिया // 16 // समचउरंसं, नग्गोहमंडलं, साइसंठाणं, खुज्जसंठाणं वामणसंठाणं, छेवट्ठसंठाणं / "जस्सुदएणं जीवे चउरंसं नाम होइ संठाणं / 'तं बहुविहप्पगारे देइ विवागं सरीरम्मि // " एवं नग्गोहाईसु पसत्थापसत्थवण्णजणगं वण्णनामं / एवं गंधरसफासा वि भाणियव्वा / किण्हवणं नीलवणं लोहियवणं हालिद्दवण्णं सुकिलवण्णं / भणियं च"किण्हा नीला लोहिय हालिद्दा सुक्किला य वन्ने / एयाणुदए जीवो होइ सरीरेण तव्यन्नो // जम्सुदएणं जौवे सरीरगं होइ किण्हवण्णं तु। तं किण्हवण्णनामं सेसगवन्ना वि एमेव // " // 16 // सुरभिदुरभी रसा पण तित्तकटुकसाययंबिला महुरा / फासा गुरुल हुमिउखरसीउराहसिणिद्धरुक्खष्ट // 17 // सुरभिगंध, दुरभिगंधं / "जम्सुद एणं जीवे दुग्गंधं अहत्र सुरमिगंधं वा / होइ सरीरं सो इह परिणामो गंधनामस्स // " रसा पण तित्तरसं, कडुयरसं, कसायरसं, अंबिलरसं, महुरसं / "जस्सुदएणं जीवो तित्तं सारण होइ हु शरीरं / तं तित्तनामकम्मं सेसा उ रसा उ एमेव // " ___फासा-गरुयफासं, लहुयकासं, मउयफासं, कक्कसफासं, सीयफासं, उण्हफासं, निद्धफासं, रुक्खफास। "जम्सुदएणं जीवे गरुयं लहुयं च तह य मिउ कठिणं / होइ सरीरे फासं सुहमसुहं तं भवे दुविहं // जस्सुदएणं जीवे निद्धं रुक्खं च तह य सीउण्हं / फासं होइ सरीरे सुहमसुहं तं भवे दुविहं / / " / / 17 / चउहगइव्वणुपुब्बी दुविहा य सुहासुहा य१विहयगई। गइअणुपुब्बीयों दुगं तिगं तु तं चिय नियाउजुधे // 18 // निरयाणुपुव्वी, तिरियाणुपुव्वी, मणुयाणुपुव्वी, देवाणुपुव्वी | जं अंगोवंगादीणं सरीरावयवविसेसाणं विणिवेसकारयं भवंतरे य वट्टमाणस्स जीवस्स जीवपएसाणुपुग्विववत्थावगं तं आणुपुविनामं / भणियं च"अंगोवंगावयवा कुणइ विसेसाउ जं सरीरस्स / कुणह अणुपुट्विपएसो निरयाई आणुपुव्वीओ // नारयतिरियनरामरमवेसु जंतस्स अतरगईए / भवइ हु जस्स विवागो तं असुपुत्वी हवइ कम्मं // " सिक्खालद्धिद्विपञ्चयस्स आगासगमणस्स जणगं विहाइगइनामं / तं दुविहं सुहविहायगई, दुहविहायगई / भणियं च- - १"तं चउरंसं नाम सेसा वि हु एव संठाणा // " इति प्राचीन प्रथमकर्मग्रन्थे पाठः। (गा० 113) ..