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________________ कर्मप्रकृत्युत्तरभेदनिरूपणम् [7 ___थावरनामं 1, सुहुमनाम 2, अपजत्तनामं 3, साहारणनामं 4, अथिरनामं 5, असुभ— नामं 6, दूभगनामं 7, दूसरनामं 8, अणादेयनामं 9, अजसकित्तिनामं 10, इय नामे सेयरा वीसं // 10 // तसचउथिरछक्कं अथिरछक्कसुहुमतिगथावरचउवकं / सुभगतिगाइविभासा पयडीण तहाइसंखाहिं // 11 // तसं, बादरं, पजत्तगं, पत्तेयः एयं तसचउक्कं / थिरं, सुभं, सुभगं, मूसरं, आदेयं, जसं एवं थिरछक्कं / अथिरं, असुमं, भगं, अणाइज्ज, अजस; एवं अथिरछक्कं / सुहुमं, अपजत्तगं, साहारणं; एवं सुहुमतिगं / अहवा थावरेण समं, थावरचउक्कं / सुभगतिगाइ विभासा, विविधा भासा विभासा / जहा सुभगं, सूसरं, आदेयं; एवं सूभगतिगं / विवरीयं भगतिगं आइपयडीविवक्खया तिगं चउक्कं पंचगं वा नेअं // 11 // एवं बायालीसविहं नामं / अहुणा तेणवइ भण्णइ गइयाईण य कमसो चउ १पण २पणइतिश्पण५पंचछ७च्छक्कं 8 / पण दुग१०पण 1 १७४१२चउ १३दुग१४मिय उत्तरभेयपणसट्टी॥१२॥ गइ 4, जाइ 5, सरीर 5, अंगोवंग 3, बंधण 5, संघाय 5, संघयण 6, संठाण 6, वण्ण 5, गंध 2, रस 5, फास 8, अणुपुवी 4, विहायगइ 5, एवं पणसट्ठी 65 // 12 / / एएसिं विवरणंनिरयतिरिनरसुरगई इगिबियतियचउपणिदिजाईयो / श्रोरालियवेउब्वियबाहारगतेयकम्मइया // 13 // निरयगई, तिरियगई, मणुयगई, देवगई जीए उदएण जीवो नेरइओ होइ नरयपुढवीए सा भणिया नरयगई / सेसगईउ वि एमेव / जाइनिष्फत्तिअभिहाणकारणं जाइनामं / तं जहा-एगिदियजाई, बेइंदियजाई, तेइंदियजाई, चउरिदियजाई, पंचिंदियजाई त्ति / एएसिं भेया-एगिदियजाइनामं पंचहा भवइ / तं जहा-पुढविकाइ एगिदियजाइनामं / एएसिं एक्केकीए अणेगभेया जहा पन्नवणाए / एवं बेइंदियतेइंदियचउरिदियपंचिंदियजाइनामाण य अणेगा भेया जहा पण्णवणाए / एवमेयं जाइनामं विवरणओ. अणेगकोडिसो भणियव्वं / अणेगा उ कुलकोडीओ संक्खेवेण पुण पंच उत्तरपगईओ वणिजिहिंति / "एगिदि एसु जीवो जस्सिह कम्मस्स होइ उदएणं / सा एगिदियजाई बहुभेओ तीअ परिणामो // " . एवं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाइओ पंचिंदियाण वि तहा बहवो भेया होंति एक्केकाए /
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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