________________ 558 ] श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासनं [ सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका गोः पुरीषे / 6 / 2 / 50 // | ग्रामराष्ट्रांशाद्-णौ। 6 / 3 / 72 / / / ब्याप्त्यूङः / 6 / 1 / 70 // गोः स्वरे यः / 6 / 27 // ग्रामामान्नियः।२।३।७१॥ - चक्षो वाचि-ख्यांग।४।४।४|| गोचरसंचर-षम् / 5 / 3 / / 13 / / ग्रामादीन च।६।३।९॥ चजः कगम् / 2 / 1 / 86 // गोण्यादेचेकण 71 / 121 // ग्राम्याशिशुद्वि-यः। 3 / 1 / 127 / चटकाण्णर:-प् / 6 / 1 / 79 // गोण्या मेये / 2 / 4 / 103 // ग्रीवातोऽण् च / 6 / 3 / 132 // चटते-स-ये / 1 / 3 / 7 // गोत्रक्षत्रिये-यः।६।३ / 208 // ग्रीष्मवसन्ताद् वा।६।३।१२०॥ चतस्रार्द्धम् / 3 / 1 / 66 / / गोत्रचरणा-मे / 7 / 1 / 75 // प्रीष्मावर-कञ्। 6 / 3 / 115|| चतुरः / 7 / 1 / 163 / / गोत्रादळूवत् / 6 / 2 / 134 // यो यडि।२।३।१०१॥ चतुर्थी / 2 / 2 / 53 // गोत्रादङ्कवत् / 63 / 155 // ग्लाहाज्यः / 5 / 3 / 118 // चतुर्थी प्रकृत्या। 3 / 1 / 70 // गोत्राददण्ड-ध्ये / 6 / 3 / 169 // घवि भावकरण / 4 / 2 // 52 // चतुर्मासान्नाम्नि / 6 / 33133 // गोत्रोक्षवत्सो-कब् / 6 / 2 12 // घञ्युपसर्ग-लम् / 3 / 2 / 86 / / चतुष्पाद् गर्भिण्या / 3 / 1 / 112 // . गोत्रोत्तरपदात्-त्यात् / 6 / / 12 / / घटादेह्र स्वो-रे।४।२।२४॥ चतुष्पाद्भय एयञ् / 6 / 18 / / गोदानादीनां-र्थे / 6 / 4 / 81 // घसेकस्वरा-सोः / 4 / 4 / 82 // चतुर हा-सि / 2 / 3 / 74 // गोधाया दुष्टे णारश्च / 6 / 1 / 8 / / घस्लु सन-लि / 4 / 4 / 17 // चत्वारिंशदादौ वा। 3 / 2 / 9 / / गोपूर्वादत इकण् / 7 / 2 / 56 / / घस्वसः / 2 / 3 / 36 // चन्द्रयुक्तात्-क्ते / 6 / 2 / 6 // गोमये वा।६।३।५२॥ घुटि / 1 / 4 / 68 / / चन्द्रायणं च चरति / 6 / 482 // गोऽम्बाम्ब-स्य / 2 / 3 // 30 // घुषेरविशब्दे / 4 / 4 / 68 / चरकमा-नञ्।७।१।३९ // गोरथवातात्-लम् / 6 / 2 / 24 // घोषदादेरकः / 7 / 2 / 74 // चरणस्य स्थेणो-दे / 3 / 11138 // गोर्नाम्न्यवोऽक्षे। 1 / 2 / 28 // घोषवति / 1 / 3 / 21 // चरणादकम् / 6 / 3 / 168 // गोश्चान्ते-हो / 24 / 96 // घ्राध्मापा -शः / 5 / 158 // चरणाद्धर्मवत् / 6 / 2 / 23 / / गोष्ठातेः शुनः / 7 / 3 / 110 // घ्राध्मोङि / 4 / 3 / 98 // चरति / 6 / 4 / 11 // गोष्ठादीनब / 7 / 2 / 79 // ध्यण्यावश्यके / 4 / 1 / 115 / / चरफलाम् / 4 / 1 / 53 / / गोस्तत्पुरुषात् / 7 / 3 / 105 // ङसेश्चाद् / 2 / 1 / 19 // चराचरचला-वा / 4 / 1 / 13 // गोहः स्वरे।४।२।४२॥ सोऽपत्ये / 6 / 1 / 28 // चरेराडस्त्वगुरौ / 5 / 1 / 31 / / गौणात् सम-या। 2 / 2 / 33 / / ङस्युक्तं कृता / 3 / 1 / 49 / / चरेष्टः / 5 / 1 / 138 // गौणो ब्यादिः / 7 / 4 / 116 // डिडौः। 1 / 4 / 25 // चर्मण्यम् / 7 / 1 / 45 / / गौरादिभ्यो मुख्यान्डी।।४।१९।। - डिदिति / 1 / 4 / 23 / / चर्मण्वत्य-त् / 2 / 1 / 96 // गौष्टीतेकी-च्चरात् / 6 / 3 / 26 / / स्मिन् / 1 / 4 / 8 // चर्मशुनः-चे। 7 / 4 / 64 // ग्मिन् / 7 / 2 / 25 // उदसा ते मे / 2 / 1 / 23 / / चमिवर्मि-रात् / 6 / 1 / 112 / / ग्रन्थान्ते।३।२।१४७ // डेदस्योर्यातौ / 1 / 4 / 6 / / चर्मोदरात्पूरेः / 5 / 4 / 56 // ग्रहः / 5 / 3 / 55 // पिबः पीप्य / 4 / 1 / 33 / / चलशब्दार्था-त् / 5 / 2 / 43 / / ग्रहगुहश्च सनः।४।४। 59 // ड सासहिवाव-ति / 5 // 2 // 38 // चल्याहारार्थेड्-नः / 3 / 3 / 108 / / ग्रहणाद्वा / 7.1 / 177 // हुणोः कटा-बा। 1 / 3 / 17 // चवर्गद-रे / 7 / 3 / 98 // ग्रहवश्वभ्रस्जप्रच्छः / 4 / श८४॥ यः / 3 / 2 / 64 // चहणः शाठ्य / 4 / 2 / 31 // ग्रहादिम्यो णिन् / 5 / 1 // 53 // यादीदूतः के / 2 / 4 / 104 / / चातुर्मास्य-च / 6 / 4. / 85 / / ग्रामकौटात् तक्ष्णः / 7 / 3 / 109 / / | ज्यादेौण-च्योः / 2 / 4 / 95 / / चादयोऽसत्त्वे / 1 / 1 / 31 // ग्रामजनबन्धु-तल्। 6 / 2 / 28 // | ड्यापो बहुलं नाम्नि / 2 / 4 / 99 // ] चादिः-नाङ / 1 / 2 / 36 //