SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवनपति] [ 23 चार गतिमां नरक गति तो केवळ दुःखनी ज | होय. आथी संयममा आवंती तकलीफो दुःखो कोई 'खाण छे. नरकमां परमाधामीओ बिचारा नरकना | हिसाबमा ज नथी. जीवोने अनेक प्रकारे दुःखी करे छे. परमाधामीओ। नारकोने क्यारेक दडानी जेम अफाळे छे. क्यारेक, मा ! आतो में गुरुमहागजना व्याख्यानमांथी तेना मुखमां ककडतो शीशानो रस रेड़े छे. क्यारेक सांभळीने तथा वैराग्यना ग्रन्थो वांचीने जे याद रह्यं करवतथी सुथार लाकडाने वेरे तेम वेरी नाखे छे. तेनी सामान्य बात करी. बाकी मने वांचत्रा माटे क्यारेक भजीयानी जेम तळी नाखे छे, तो क्यारेक | पू0 गुरुमहाराजश्री अमी वि० महाराजे 'उपमिति धगधगती लोखण्डनी पृतळीओ साथे आलिंगन | भवप्रपंचा' ग्रन्थ आपेल, से ग्रन्थमां दुःखमय संसारनं करावे छे. नरकभूमिमां र हेली भयंकर गरमीनी तो जे आबेहूब स्वरूप दर्शाव्युछे, तेने तु सांभळे तो वात जशी करवी ? त्यां ठंडी पण तेटलीज. नारको खबर पडे के संसारमा आ जीये केवा दुःखो सहन परस्पर अक बीजानी साथे युद्ध करीने अत्यंत दुःख कर्या छे, अने केवा केया रूपो कर्या छे ! आ ग्रन्थ पामे छे. ............................ | वांच्या बाद लघुकर्मी जीपने प्रायः वैराग्य थया मा ! ओ ना(कोनु दुःख दूर छे अथी ते आपणे | विना न रहे. जोई शकता नथी भेटले अनी वात दूर राखी, मा ! संयममां कठिनता होय तो छ के तोपण आपणी सामे प्रत्यक्ष देखातु आतियेच गतिना संयममां मळती अनुकूळताओने पचावी. अनुकूळताजीवोनु दुःख शु' ओछुछे ? आपणने तात्र आवे तो | ओने पचाववी भेटले तेमां समभाव राखबो, गर्वित न आपणे तुरत वैद्य या डोक्टरने बोलावी. पण बिचारा | बनवु', शिथिलताने वश न थबु. प्रतिकूळताओ तिर्यंचोने ताव आवे तो कोने बोलावे ? अनी सार | पचारवी सहेली छे. पण अनुकूळतानो पचावधी घणी संभाळ कोण करे ? आपणने साप करडे तो आपणे | | कठिन छे. भलभला महामुनिओ अनुकूळतामा फसाईने तुरत झेर उतारनारने बोलाबीओ, वैद्य-डोक्टरने बोला | आ संसारनी केदमां पराई गया. प्रव्रज्या बाद बी, पण बिचारा जंगलमा हरणीयाओने साप करडे गुरुओनी कृपाथी यत्किंचित् ज्ञान प्राप्त थाय तो झेर उतारनार कोण ? कडकडती ठंडीमा ठरता तेनाथी गर्वित न बनी जवाय तथा अन्तरमा स्वतंत्रतानी जंगलना प्राणीओनु दुःख शुओछु छे ? आपणी | " | चिनगारी न प्रगटे मे माटे बहुज सावध रहेवानी नजर सामे आपणे जोई छी के श्वान वगेरेना | | जरूर रहे छे. भक्तवर्गनी वाह वाहमा फुलाई न शरीरमां चांदा पडे छे त्यारे तेने केटलु सहन करवु जवाय तेनी तकेदारी राववानी आवश्यक्ता रहे छे. पडे छे ? मांदगीमां आपणा शरीर पर माखीओ बेशे | अन्यथा मान-सन्माननी तथा प्रशंसानी प्राप्तिथी तो आपणे उडाडी दई अथवा बीजाओ उडाडे. पण | आंधळा बनीने अहंकारना स्तंभ साथे अथडाई संयमना आ श्वाननी पीठमां चांदा पडे अने ते उपर माखीओ | देहमांथी सत्त्वना लोहीने वही जता वार न लागे. बेशीने तेने कनडे त्यारे माखीओने उडाडवा कोण जाय ? पोते पण उडाडी न शके. आ स्थितिमा मा ! पण हुआ माटे संपूर्ण सावध रहीश. तेनी वेदनानो पार नथी हो तो. मा! आ नरक गतिना तारी कीर्ति वधारीश. सारा नामने दीपावीश. भगवान अने तिर्यच गतिना दुःखो आ जीवे अनन्त वार सहन | महावीरना वेशने शोभावीश. मारा आत्माने उजाळीश. कर्या के. वी कोई गति नथी, अबी कोई योनि नथी, | अन्यने आलबनरूप बने तेवु उदात्त जीवन जीवीश.. भेवु कोई स्थान नथी, अर्बु कोई कुल नथी के ज्या पण आमां तारा आशीर्वादनी जरूर छे. मा! वहालआ जीव अनन्तीवार न जन्म्यो होय भने न मर्यो | सोया तारा हाथ मारा मस्तक उपर मूकीने "तारो होय. शारीरिक के मानसिक अवकोई दुःख नथी आत्मकल्याण मार्गनिर्षित बनो"प्रमाणे नारे के जेनो अनुभव संसारमा भटकता आ जीव न कयो ' आशीर्वाद आपवा ज पडशे.
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy