________________ [ उपोद्घात नामोनी साधनिकामां कणि मे प्रमाणे मात्र रूपनो | मनीषी श्रीकनकप्रभसूरिजीकृत बृहवृत्तिना निर्देश करवामां आवेल छ पण तेनी सिद्धि माटे क्रमशः | लघुन्यासमां साधनिकाओ बताववामां आवी छे, पण सत्रो आपवामां नथी आव्या. कारण के जे सत्रोथी | बहुज अल्पस्थळोमां. आ लघुन्यास ग्रन्थमां बहुधा 'कणि' रूपनी सिद्धि थाय छे ते 'नपुसकस्य शिः' | सूत्रोमा रहेला पदार्थना रहस्योने प्रकट करवा साथे (शा५५) 'अनाम् स्वरे नोऽन्तः' (1 / 4 / 64) वगेरे सूत्रो | प्रसंगोचित विविध चर्चाओ करवामां आवी छे. आथी पूर्वे नपुसकलिंग अकारादिशब्दोनी 'साधनिकामां | आ ग्रन्थ सिद्धहेमना प्रौढ अभ्यासकोने ज उपयोगी छे. आवी गया छे. आ प्रमाणे हैमप्रकाशमां क्रमशः सूत्रो बतावीने साधनिका बहुज अल्पस्थळोमां करवामां आवी विद्वद्वर्य श्रीमदमरचन्द्रविरचित (बृहद्वृत्तिनी) छ, आथी अपेक्षाओ हैमप्रकाशथी पण आ अवचूरिनी प्रवचूरिण नव पाद सुधीनी छपायेली छे. आ प्रन्थनी महत्ता वधारे छे. प्रतिपादनशैली बहुधा श्रीकनकप्रभसूरिजीकृत लघु न्यासने मळती आवे छे. आथी तेमां पण साधनिकाओ आगळ वधीने आपणे जोई तो आख्यात बहु अल्प स्थळोमां बताववामा आवी छे. प्रकरणमा ते ते स्थळे आवता धातुना रूपोनी साधनिका पण अत्यन्त सुन्दर रीते करवामां आवी छे. लघुवृत्ति उपर मुनिवर्य श्रीजितेन्द्रविजयजी दाखला तरीके-'रुदविदमुष'० (4 / 3 / 32 ) सूत्रनी | महाराजकृत प्रवचूरिपरिष्कार दश पाद सुधी अवचूरिमां 'पृष्ट्वा' रूपनी सिद्धि-"पृष्ट्वा इत्यत्र | छपायेल छे. तेमां प्रस्तुत अवचूरिनी जेम साधनिका प्रच्छ, क्त्वा, किवद्भावात् 'प्रहश्चभ्रस्जप्रच्छ:' ठीक ठीक उपलब्ध थाय छे. आथी अनुमान थाय छे के (4 / 1184) इत्यनेन वृन्-रस्य ऋ, 'अनुनाशिके च | आगळ अगीयारमा वगेरे पादोमां पण साधनिका ठीक च्छवः शूट्' (4 / 1 / 108) इत्यनेन छकारस्थाने ताल ठीक हशे. पण हाल तो आ ग्रन्थ दश पाद सुधी ज व्यशकारः, 'यजसृजमृज०' (2 / 1187) इत्यनेन शका | छपायेल छे. तथा अबचूरिपरिष्कार लघुवृत्ति उपर रस्य षकारः, 'तवर्गस्य श्ववर्ग०' ( 13660 ) इत्यनेन | | होवाथी आ अबचूरिनी अपेक्षा तेमां सावनिका अल्प प्रत्ययतकारस्य ट:" आ प्रमाणे क्रमशः सूत्रोना उल्लेख होय से स्वाभाविक छे. साथे बताववामां आवी छे. मोटे भागे दरेक सूत्रनी अवचूरि आ प्रमाणे साधनिकाथी ज परिपूर्ण छे. अवचूरिनी बोजी विशेषता “यपि चादो जग्ध्" (4|4|16) से सूत्रनी अवचूरिकार केवळ साधनिकाओ बतावीने वृत्तिमा जणाव्यु के "अन्तरङ्गानपि विधीन् बहिरङ्गा | नथी अटकी गया. तेमणे साधनिका बतायवा उपरांत लुब् बाधते" ओ न्यायथी प्रशम्य, प्रपृच्छय, प्रदीव्य... | ठेर ठेर बृहद्वृत्तिमांथी उपयोगी विषयो लईने अव.............'' इत्यादि स्थळे अनुक्रमे दीर्घत्व, शत्व, | चूरिमां गुथी लीधा छे. आ अवचूरिनु सूक्ष्मदृष्टिों ..."यप' थी बाधित थाय छे. अहीं | निरीक्षण करवाथी अ पण स्पष्ट जणाई आवे छे के अवचूरिकारे प्रशम्य, प्रपृच्छय, प्रदीव्य............. | मनीषी श्रीकनकप्रभसूरिजीकृत लघुभ्यासमाथी पण .............. इत्यादिमां दीर्घत्व, शत्व, ऊत्व........." उपयोगी विषयोनो संग्रह करी लीधो छे. कोई कोई ......"नी प्राप्ति कया सूत्रथी थाय छे ते क्रमशः स्थळे बृहद्वृत्तिनी तथा लघुन्यासनी पंक्तिओ बताववामां आव्युं छे. आ स्पष्टता नथी हैमप्रकाशमां | अक्षरशः तेवीने नेत्री ज मळे छ; तो कोई कोई स्थळे के नथी लघुन्यासमां. | ओछावत्ता फेरफार साथे देखाय छे. ऊत्व जमा ग्रन्थन संपादन-संशोधन पू० पं० श्रीचन्द्रसागरजी गणिवर्ये (हाल सूरि) कयुं छे.