________________ ज्योधात ] [ 15 कायस्थे लघुवृत्तिनु प्रणयन कर्य हशे. आ काकलकाय- | __अव रिनी प्रथम विशेषता स्थ कलिकालसर्वज्ञ भगवंतनी हयातिमां ज सिद्ध तेमा प्रथम विशेषता से छे के- तेमां वृत्तिमा हेमनो मुख्य अध्यापक हतो, अने आठ व्याकरणोनो। आवता उदाहरणोनी तथा प्रत्युदाहरणोनी ठेर ठेर अभ्यासी हतो. लघुवृत्तिनी रचना काकलकायस्थे करी साधनिका करवामां आवी छे. साधनिका माटे आ होवा छतां केटलीट प्रतोमा तेनो स्वोरज्ञ तरीके जे | अवचूरि अत्यंत उपयोगी छे. जेमा उदाहरण के प्रत्युनिर्देश करवामां आव्यो छे, ते का लकायस्थे बृहद्व्- | दाहरणनी साधनिका न करवामां आवी होय तेवी त्तिमांथी ज संक्षेप करीने लघुवृत्ति रची होय अटले | अवचूरि थोडा ज सूत्रोनी छे. आथी आ अवचूरि सिद्धकेटलाको आ वृत्तिने स्वोपज्ञ गणी होय अम मारुहेमना प्राथमिक अभ्यासीओने तथा शिक्षकोने पण मानवु छे. मारी आ मान्यतामां फेरफार होय तो | अत्यंत उपयोगीथई पडशे.उदाहरण तथा प्रत्युदाहरणमा प्रमाण साथे जणाववा अथवा आना अंगे सप्रमारण | आवता नामना रूपोनी, धातुना रूपोनी, कृदंत नामोनी स्पष्टता करवा विद्वद्वर्ग पासेथी आशा राख्छु. | तथा तद्धितान्त शब्दोनी सिद्धि क्रमशः सूत्रो आपीने अवचूरिना प्रणेता वगेरे | बहु सुदर रीते करवामां आधी छे. हुजो न भूलतो होउं तो, सिद्धहेमना अभ्यासमा उपयोगी ग्रन्थो अत्यारे जे ___ मध्यमवृत्तिनी अवचूरिना प्रणेता कोण हता ? | उपलब्ध थाय छे-प्रकाशित थया छे तेमांना कोई ते क्यारे थई गया ? तेमणे अवचूरिनी रचना क्यारे ग्रन्थमां आ अवचूरिनी जेम ठेर ठेर क्रमशः सूत्रो आपीने करी? अन्य कया कया ग्रन्थोनी रचना करी ? | साधनिका नथी करवामां आवी; सिवाय शब्दमहारणइत्यादि कोई प्रकारनो उल्लेख.आ वृत्तिनी उपलब्ध | वन्यास. कलिकालसर्वज्ञ भगवंत विरचित बृहन्न्यास मूल प्रतमां करवामां आव्यो नथी. अन्य पण सेवा / अत्यारे जेटला प्रमाणमां उपलब्ध थाय छे तेने जोवाथी साधनो हाल उपलब्ध नथी के जेनाथी प्रस्तुत अव- जणाय छे के तेमां बृहद्वृत्तिमा आवता दृष्टांतोनी साधचूरिना कर्तानो निर्णय करी शकाय. निका लगभग बताववामां आवी छे. स्व०पू० प्राचार्य छतां अवचूरिना अंतमा आवेल 'संवत् 14...' | श्रीलावण्यसूरिजी महाराजे त्रुटक न्यासनु अनुसंसे अक्षरथी अनुमान थाय छे के आ अवचूरिनी प्रत धान कयं छे, तेमां पण सूत्रोना निर्देश पूर्वक साध१५ मां सैकामां लखायेली हशे. से प्रत वळी अन्य कोई निका करवामां आधी छे. प्रतना आधारे लखायेली हशे, अम तेमां आवता यद्यपि हैमप्रकाश क साधनिकानो ज ग्रन्थ .................."आवा त्रुटित स्थानोथी अनुमान थाय | छे. छतां अवचूरिमां अनेक स्थळे सावनिका करवामां छे.आथी अवचूरिनाकर्ता 15 मांसैकामां या तेनीपण पूर्वे जे क्रमशः सूत्रो वतात्रवामां आव्या छे ते हैमप्रकाशमां थया हशे. आथी अवचूरि नी रचना पण 15 मां सैकामां नहि मळे. हैमप्रकाशमां जे अक शब्दना के धातुना या तेनी पण पूर्वे थई हशे अम संभवे छे. आथी आ रूपनी प्रक्रिया चालती हशे ते ज शब्दना के धातुना अवचूरि घणी प्राचीन छे अम अनुमान करी शकाय छे. रूपनी सिद्धि माटे क्रमशः सूत्रो बतात्रवामां आव्या छे. अवचूरिना कर्ता विद्वान हता मे तो अवचूरिना निरी- आथी तेमां अकवार आवी गयेल सूत्रनो पुनः निर्देश क्षणथी सुस्पष्ट जणाई आवे छे.तेमनोव्याकरणविषयक | नहि आवे. दाखला तरीके-षलिंग प्रकरणमा अझै च' तेमां पण प्रक्रियाविषयक बोध घणो ज संगीन हतो (1 / 4 / 39) सूत्रनी अवचूरिमां कत णि शब्दनी प्रक्रिया भे अधचूरिमां ठेर ठेर आवती साधनिकाओथी जणाई | "कर्तृणि' इत्यत्र जस् शस् वा, नपुंसकस्य शिः' (1 / 4 / भावे छे. आ अवचूरिनु प्रमाण लगभग 24-25 हजार | 55), 'अनाम् स्वरे नोऽन्तः' (1 / 4 / 64) इति नकारागमः, लोक प्रमाग लागे छे. साधनिका माटे आ अवचूरि 'नि दीर्घ.' (114.85) इति दीर्घः, कत णि सिद्धम्" अत्यंत उपयोगी छे. आ अवचूरिमां मुख्य बे विशेष- आ प्रमाणे क्रमशः सूत्रोनो निर्देश करीने बतायवामां ताओ छे. आवी छे. ज्यारे हैमप्रकाशमां ऋकारान्त नपुंसकलिंग