________________ [ उपोद्घात कारण ? तथा त्रण मूल्यवंता वस्त्रो भेट धर्या. पण चाचिंगे। आत्मविकास अने आचार्यपद उदयनमंत्री आपेल भेटने शिवनिर्माल्य तुल्य गणीने ___त्यार बाद अनेक सूर्य अने चन्द्र उदय पाम्या तथा न स्वीकारी. उदयनमंत्रीनी आ भक्तिथी ते घणो | अस्त पाम्या. श्रीसोमचंन्द्र मुनि तपथी कायाने दमे छे. प्रसन्न थयो. अथी उदयन मंत्रीना कहेवाथी पोताना | | प्रतिकूलता अनुकूलता बनेने पचावे छे. विषयोने बाळकने देवचन्द्रसूरिजीना चरणे समी दीधो. | विषनी दृष्टिथी जुओ छे. कषायोने कातिल शस्त्रथी पण गुरुओ ते बालकने प्रव्रज्या आपी. ते निमित्ते चाचिंगे। | भयंकर गणे छे. महोत्सव कर्यो.॥ सरस्वतीनी साधना अयमात्मैव संसारः, कषायेन्द्रियनिर्जितः; तमेव तद्विजेतारं, मोक्षमाहुर्मनीषिणः / / ___श्रीसोमचन्द्रमुनि गुरुनी सेवाना मेवा आस्वा [कषाय अने इन्द्रियोथी जितायेलो आआत्मा ज दवा लाग्या. सतत स्वाध्यायनी मधुर बंसरी बजाववा लाग्या. तेमनी बुद्धि बृहस्पतिने पण शरमावे तेवी संसार छे. आथी विचक्षण पुरुषो कषाय अने इन्द्रियो उपर विजय मेळवनार आत्नाने ज मोक्ष कहे छे.) हती. तेमनी ज्ञानतृषा अगस्त्य ऋषिनी सागरपान कर आ सूत्रना भावने तेमणे पोतानी नसे नसमां वानी इच्छाथी पण अधिक हती. आथी पोते सर्व साधुओथी अधिक अभ्यास करता होवा छतां तेमां | परिणमावी दीधो हतो. पोतानी पासे आवनार सर्वने तेमने संतोष न थयो. श्रीसोमचंद्रमुनिना अंतरमांथी | . तेओ कहेता-तमारे संसारमा स्वर्गनो अनुभव करवो काश्मीरदेशमा जईने सरस्वतीने प्रसन्न करवानो नाद | छ ? जो जवाब हकारमा होय तो विषय-कषाय उपर ऊठयो.गुरुदेवनी आज्ञाथी श्रीसोमचंद्रमुनि शुभमुहूर्ते | | तिरस्कारवृत्ति करी तेना उपर विजय मेळवो. अन्य मुनिओनी साथे काश्मीर देशमा जवा खंभातथी काळनो प्रवाह वणथंभ्यो वह्यो जतो हतो. पण प्रयाण कयु. प्रथम मुकाम रैवतावतार तीर्थमां थयो. काळप्रवाहनुवहेण जेटली झडपथी वहेतु हतुतेनाथी श्रीसोमचन्द्रमुनिना मनमां तो हवे सरस्वतीनी ज मूर्ति अधिक झडपथी श्रीसोमचन्द्र मुनि आत्मविकासनी रमवा लागी. आहार करतां जाणे सरस्वती सामेथी साधना शरू करी दीधी. आथी अल्पसमयमां ते आचार्य भावी रह्या छे अवो भास थाय छे. गोचरी जता सामे | | पदने योग्य बनी गया. अक दिवस अवो आवी गयो के | जे दिवसे आचार्य श्रीदेवचन्द्रसूरिजी श्रीसोमचन्द्रसरस्वतीनी मूर्ति खडी थाय छे. हवे सरस्वतीना दर्शनमां विलंब शय से तेमने पोषाय तेम न हतु. तेमणे | Baa मुनिने तेमना शिरे जैनशासननी जबाबदारीआनो बोजो ओज रात्रे अकाग्र चित्ते सरस्वतीनुध्यान कयु. सरस्वती | | मूकीने आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरि बनाव्या. शुभ दिवस देवी प्रसन्न थई त्यां ज प्रत्यक्ष दर्शन आपीने का. | हतो विक्रम संवत् 1166 नो वै० सु० अक्षय तृतीया. "वत्स ! तारे काश्मीर जवानी जरूर नथी. तारी भक्ति सिद्धराज साथे श्रोहेमचंद्रसरिजोनु मोलन अने प्रणिधानथी हु प्रसन्न थई छु मारा तने आशी- | जल जेम भूमिने द्रवित करतु जाय तेम र्वाद छे के- तु सिद्धसारस्वत था'. आ प्रमाणे आचार्य श्रीहेमचन्द्रसरिजी भव्य जीवोना हृदयपटने कहीने देवी स्वस्थाने चाल्या गया. श्रीसोमचन्द्र मुनि | धर्मभावनाथी द्रवित करता करता पाटण पधार्या. प्रातःकाल थतां गुरुनी पासे आव्या. तेमणे गुरुने अक वखत तेओ पाटणना राजमार्ग उपर पसार थई रात्रिनो वृत्तांत विदित करीने प्रसन्न कर्या. / रह्या हता.*मना देह उपर ब्रह्मचर्यनु तेज अने ज प्रबंधचिंतामणि अने कुमारपालप्रबंधमां आ वृत्तांत लगभग मळतो प्रावे छे, नहिवत् फेरफार छे. aa हकीकत 'कुमारपाल चरित्र' ना प्राधारे लखवामां आवी छे. 'प्रभावक चरित्र'मां सिद्धराजे श्रीहेमचन्द्रसूरिजीने अंक दुकान उपर उभेला जोया प्रेम जणाववामां आव्यु छे. जुमो प्रभावक च० पृ० 300 श्लोक 65.