________________ विकारार्थाधिकारः] मध्यमवृत्त्यवचूरिसंवलितम् / [299 प्रभृतयः / प्राणिग्रहणेनैव चेतनावत्त्वेन वृक्षौषधि- अव०–'औष्ट्रिका' इत्यत्र 'जातिश्च णितद्धित०' ग्रहणे सिद्धे तदुपादानमिह"........... शास्र (3 / 2 / 51) इत्यादिना पु वद्भावः / / 36 / / प्राणिग्रहणेन वसा एव) प्राणिन: गृह्यन्ते, न च उमोर्णाद्वा / / 6 / 1 / 37 // स्थावराः इति ज्ञापनार्थम् / पाटलिपुत्रस्यावयवः= पाटलिपुत्रकः, पाटलिपुत्रस्यावयवाः पाटलिपुत्रकाः म० वृ० -उमा-उर्णाशब्दाभ्यां यथासम्भवं विकारेप्रासादाः; अस्मिन् वाक्येऽवयवोऽपि इदमर्थो विव ऽवयवे वा- 'ऽकम 'स्यात् वा / औमकम् , औमम्।। क्षितः कल्पनीयः, ततः 'तस्येदम्' (6 / 3 / 160) इति और्ण म , 'और्णः कम्बलः // 37 // सूत्रप्रत्ययप्राप्तावपि 'रोपान्त्यात्' (6 / 3 / 42) इति सूत्रस्य विशेषविधिप्रत्ययविध- 'रोपान्त्यात्' इत्य प्रव०-उमा अतसी, तस्या विकारोऽवयवो नेनैव अकन् प्रत्ययो भवति अत्रोदाहरणे. वा औमकम् , औमम् / उर्णा या विकार और्णः इत्यर्थः ( ? ) // 31 / / इत्यत्र 'विकारे' (6 / 2 / 30) इत्यनेन अण् // 37 // तालाद्धनुषि // 6 / 2 / 32 // एण्या एयञ् / / 6 / 2 / 38 // म० वृक्ष-तालशब्दानुषि विकारे-'ऽण् स्यात् / म० वृ०-'एणीशब्दाद्विकारेऽवयवे (वा) 'एयन्' दुलक्षणस्य [‘दोरप्राणिनः' (6 / 2 / 49) इत्युक्तस्य] स्यात् / 'अणोऽपवादः / ऐणेयं मांसम् , ऐणेयी मयटोऽपवादः / तालस्य विकारः नालं धनुः / जङ्घा / // 38 // धनुषीति किम् ? तालमयं काण्डम् ['दोरप्राणिनः' __ अव-प्राण्योषधिवृक्ष'० (6 / 2 / 31) इत्युइति मयट] // 32 // |. क्तस्याणः / 'एण्या एयन्त्र' इति सूत्रे स्त्रीलिङ्ग एणी * पुजतोः पोऽन्तश्च / / 6 / 2 / 33 / / इति निर्देशात् पुल्लिङ्गणशब्दादणेव भवति, यथाम. वृ०-त्रपुजतुशब्दाभ्यां विकारे-'ऽण' | ऐणं मांसम् , ऐणी जङ्घा ; अत्र 'प्राण्यौषधि'० इत्यण स्यात् / तयोश्च षोऽन्तः / त्रापुषम् , जातुषम् // 33 / / // 38 // - शम्या लः // 6 / 2 / 34 // कोशेयम् / / 6 / 2 / 39 // म. वृ०-शमीशब्दाद्विकारेऽवयवे चा- 'ऽण्' | ___ म० ०-कोशाद्विकारे 'एयरा' निपात्यते / स्यात् , तद्योगे च लोन्तः / शम्या विकारोऽवयवो कोशस्य विकारः कौशेयं वस्त्र सूत्रं (वा) // 39 / / षा-शामीलं भस्म / शामीली शाखा // 34 // प्रव०-निपातनं रूढयर्थम् , तेन वस्त्रसूत्रयोपयो-द्रोर्यः / / 6 / 2 / 35 / / र्वाच्ययोः कोशा देयन, अन्यत्र भस्मादौ न एयत्र // 39 // म० वृ०-पयस्- दुशब्दाभ्यां विकारे 'यः' स्यात् / पयसोऽणोऽपवादः,द्रोरेकस्वरमयटः / पयसो विकारः परशव्याद् यलुक् च / / 6 / 2 / 40 // =पयस्यम् / द्रोर्दारुणो विकारो द्रव्यम् [ 'अस्वय- म०व०-परशव्याद् विकारे 'यथाविहितमण' म्भुवोऽव्' / 7 / 4 / 70 / ] // 35 // स्यात् , यकारस्य च लुक् / परशव्यस्यायसो विकारः उष्ट्रादका // 6 / 2 / 36 // पारशवम् / अण् सिद्ध एव, यलुगर्थे वचनम् // 40 // म० वृ०-उष्ट्राद्विकारेऽवयवे चा'-ऽकन्' स्यात् / अव०-परशु, परशवे इदं-परशव्यम् , उवर्णउष्ट्रस्य उष्ट्रया वा विकारोऽवयवो वा औष्ट्रकं मांसम् / युगादेर्यः' (71 / 3 ) इति यः, 'अस्वयंभुवोऽव्' भौष्ट्रिका जङ्घा // 36 // (74/70) इति अव् // 40 //