________________ श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासने द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः धवाद्योगादपालकान्तात् // 2 // 4 // 59 // धववाचिनोऽकारान्ताद्योगात्सम्बन्धात् स्त्रीवृत्तेर्नाम्नः पालकान्तवर्जाद् ङीः स्यात् / प्रष्ठस्य भार्या प्रष्ठी। एवं प्रवरी गणकी। धवादिति किम् ? प्रजाता प्रसूता-विनिटुंठितगर्भा इत्यर्थः / अस्त्यत्र योगस्तेन विना विवं विना जन्म] प्रसवाभावान तु धववाचिनाम / योगादिति किम् ? देवदत्तो धवः, देवदत्ता भार्या / अपालकान्तादिति किम् ? गोपालिका / एवं पशुपालिका / कथं ज्येष्ठस्य भार्या ज्येष्ठा, कनिष्ठा मध्यमा ? अजादिपाठात् // 59 // है। अ० योगात् सम्बन्धादिति / सम्बन्धश्च सम्बन्धिनमपेक्षते स च प्रत्यासन्नत्वाद् धवस्यैव योगो गृह्यते इत्यर्थः / पालकशब्दो वय॑ते / प्रष्ठादयो हि शब्दा धववाचिनोऽपि योगात् सोऽयमित्यभेदोपचारेण भार्यायां वर्तन्ते / यदा तु 'तस्येदम्' (6 / 3 / 160) इति व्यतिरेकविवक्षा तदा तद्धितोऽण् भवति / प्रष्ठस्येयं प्राष्ठी / एवं प्रावरी / अत्र स्वत एव सम्बन्धः, न तद्योगात् / गोपालकस्य भार्या गोपालिका-पशुपालकस्य भार्या // 19 // ___ पूसक्रतुवृषाकप्यग्निकुसितकुसिदादै च // 2 / 4 / 60 // एभ्यो धववाचिभ्यस्तद्योगात् स्त्रीवृत्तिभ्यो ङीः स्यात् / ङीयोगे ऐकारश्चान्तादेशः / [पूतक्रतो र्या] पूतजतायी / [वृषाकपेर्भार्या] वृषाकपायी / [अग्रेर्भार्या] अग्रायी / कुसितायी / कुसिदायी // 6 // ___ अ० पूतक्रतु इति सूत्रे व्यावृत्तिरियम्। योगादित्येव-पूताः ऋतवो यया सा पूतक्रतुः / एवं वृषाकपि म काचित् // 60 // मनोरौ च वा // 2 / 4 / 61 // मनोर्धवनाम्नस्तयोगात् स्त्रीवृत्तेर्डीर्वा स्यात्, ङीयोगे औकार ऐकारश्चान्तादेशः / [मनोर्भार्या] मनावी मनायी मनुः // 61 // वरुणेन्द्ररुद्रभवशर्वमृडादान् चान्तः // 2 // 4 // 62 // एभ्यो धवनामभ्यस्तद्योगात्स्त्रीवृत्तेर्जीः, आन् अन्त आगमश्च स्यात् / [वरुणस्य भार्या] वरुणानी। इन्द्राणी। भिवस्य रुद्रस्य भार्या] भवानी / रुद्राणी / [शर्वस्य मृडस्य भार्या] शर्वाणी / मृडानी // 62 // मातुलाचार्योपाध्यायाद्वा // 2 // 4 / 63 // __ एभ्यो धवनामभ्यो योगात् स्त्रियां वृत्तिभ्यो ङीः स्यात् / आन् वाऽन्तश्च / [मातुलस्य भार्या] मातुलानी मातुली / आचार्यानी आचार्टी / [आचार्यानीत्यत्र 'क्षुभ्नादीनाम्' (2 / 3 / 96) इति णत्वं न भवति] उपाध्यायानी / उपाध्यायी // 63 // सूर्याद्देवतायां वा // 2 // 4 // 64 // सूर्याद्धवनाम्नस्तद्योगाद्देवतास्त्रीवृत्तेॐर्वा स्यात् / आन् चान्तः / [सूर्यस्य भार्या] सूर्याणी / पक्षे आप एव-सूर्या / देवतायामिति किम् ? सूर्यस्यादित्यस्य मनुष्यस्य वा भार्या मानुषी सूरी // 64 // अ० भगवतोऽपि हि सूर्यस्य वरप्रदानेन मानुषीया भार्या सा सूरी इत्युच्यते (यथा) कुन्ती। धवाद्योगादपालकान्तात्' (2 / 4/59) इति डीः / ‘सूर्यागस्त्ययोरीये च' (2 / 4 / 89) इत्यनेन यकारस्य लोपः / सूरी इति सिद्धम् // 64 // यवयवनारण्यहिमाद्दोषलिप्युरुमहत्त्वे // 2 // 4 // 65 //