________________ विविधषन्धाः। 000000000000000000000000000000000000000000 .. (7) नामाङ्कचक्रवन्धःपुरःपुरो लिखेत्पादानत्र त्रीन् पडरीकृतान् / तुर्य तु भ्रमये मौ नामाङ्कश्चक्रसंविधिः // generera G Car avelava मास / म का त्वंमानविशिष्टमाजि / Bobabbele ध्यापक्षयश्चडिरुद्ध - హramarararararararararararararararararararararararararararararao फ्लाकामभपास्समीप तरश्रीवत्सभूमिसु Barrierefrearea recreacordarearen erreno decretos भसादालम्ब्यभव्यःपुन सत्वं मानविशिष्टमाजिरभसादालम्ब्य भव्यः पुरो लब्धाघक्षयशुद्धिरुद्धरतरश्रीवत्सभूमिर्मुदा।। मुक्त्वाकाममपास्तभीः परमृगव्याधः सनादं हरे. रेकौधैः समकालमभ्रमुदयीरोपैस्तदा तस्तरे // (द्वि. प. पृ. 276 श्लो. 296.) 000000000000000000000000000000000000000