________________ 684 -: काव्यमाला। अर्घगुणसंपद्योगादधमा यथा'ते' किर खणां विरजसि तं किर उवहससि सअलमहिलाओ। एहेहि वारवालिइ अंतूं मइलं समुप्पिसिमो // 376 // ' त्वं किल क्षणाद्विरज्यसे त्वं किलोपहससि सकलमहिलाः / एह्येहि वारपालिके अश्रु मलिनं समुत्प्रोञ्छामः // ] चयःकौशलाभ्यामसंपूर्णा मुग्धा यथा'सहिआहिँ भण्णमाणा थणए लग्गं कुसुंभपुप्फ त्ति / मुद्धबहुँआ हसिज्जइ पप्फोडती णहवआई // 377 // ' [सखीभिर्मण्यमाना स्तने लग्नं कुसुम्भपुष्पमिति / मुग्धवधूका हस्यते प्रस्फोटयन्ती नखपदानि // ] वयसा परिपूर्णा मध्यमा यथा'पडिवक्खमणुउंजे लावणउडे अणंगगअर्कुम्भे / पुरिससअहिअअधरिए कीस थणंती थणे वहसि // 378 // ' [प्रतिपक्षमन्युपुञ्जौ लावण्यपुटावनङ्गगजकुम्भौ / पुरुषशतहृदयधृतौ किमिति स्तनन्ती स्तनौ वहसि // ] वयःकौशलाभ्यां संपूर्णा प्रगल्भा यथा'खिंण्णस्स ठवेइ उरे पइणो गिम्हावरण्हरमिअस्स / ओलं गलन्तउप्फ हणसुअन्धं चिउरभारम् // 379 // [खिन्नस्य स्थापयत्युरसि पत्युीष्मापराहरमितस्य / आद्रे गलत्कुसुमं स्नानसुगन्धं चिकुरभारम् // ] 1. 'तकिं खण' ख. 2. 'उवहरसि' घ. 3. 'अलमहिलाओ' क.ख. 4. 'अंसूमइमलं' क.ख. 5. 'समुप्पिसिओ' ख., 'समुप्पुसिमो' घ. 6. 'लग्गकुम्भपुप्पुति' ख. 7. 'मुद्धबहूआ' ख. 8. 'मण्णुपुले' गाथासप्त०, 'मण्णुउडे' क., 'मत्तउजे' ख. 9. 'लावसउदे' ख. 10. 'अणङ्गअकुम्भ' ख. 11. 'खिण्णस्स उरे पइणो ठवेइ' गाथासप्त० 12. 'ठवेइउ पइणो' क., 'वचेइर पइणो' ख. 13. गिम्हावरणहरणमिअस्स' ख. 14. 'गलन्तकुसुमं' इति गाथासप्त०.