________________ 5 परिच्छेदः / सरखतीकण्ठाभरणम् / कारणनिरपेक्षोऽकृत्रिमो यथा'जह जह जरापरिणओ होइ पई दुग्गओ विरूओ वि / कुलपालिआई तह तह अहिअअरं वल्लहो होइ // 329 // [यथा यथा जरापरिणतो भवति पतिर्दुगतो विरूपोऽपि / .. कुलपालिकायास्तथा तथाधिकतरं वल्लभो भवति // ], जन्मान्तरसंस्कारजनितः सहजो यथा'आणिअपुलउन्भेओ सवत्तिपणअपरिधूसरम्मि वि गुरुएँ / पिअदंसणे पवड्डइ मण्णुंडाणे वि रुप्पिणीअ पहरिसो // 330 // ' [आनीतपुलकोद्भेदः सपत्नीप्रणयपरिधूसरेऽपि गुरुके। प्रियदर्शने प्रवर्धते मन्युस्थानेऽपि रुक्मिण्याः प्रहर्षः // ] उपचारापेक्षप्रकर्ष आहार्यो यथा'घरिणीअ अकब चटुंअं पिअअमे कुणंतम्मि / अकअस्थाई वि जाआइ झंति सिढिलाई अंगाई // 331 // गृहिण्या अकैतवं चटुकं प्रियतमे कुर्वाणे सति / . अकृतार्थानीव जायाया झटिति शिथिलान्यङ्गानि // ] यौवनजो यथा. 'तंबमुहकआहोआ जहँ जह थणआ किलेंति कुमरीणम् / तह तह लद्धावासोब वम्मैहो हिअअमाविसइ // 332 // ' 1. 'कुलवालिआण' गाथासप्त०., 'कुलवालिआए' क.ख. 2. 'पुलओन्मेओ' क. ख. 3. 'गरुए' क., 'गरूए' ख. 4. 'मम्हाणे' क. 5. 'रुम्मिणीअ' क. 6. 'कइअव्वं' क.ख. 7. 'चडुलं' क., 'बहुलं' ख. 8. 'न्हत्ति' क., ‘गत्ति' ख. 9. 'सिढिलिआई' क.ख. 10. 'जह' क. 11. 'कुमारीणं' क. 12. 'मम्महो' घ. 43 स० क.