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________________ जी को भी निरीक्षण एवं परिमार्जन के लिये सूचित किया। इस तरह दोनों विद्वानों ने परिश्रमपूर्वक यथाशक्य संशोधन किया और 'वीरस्तव' का पूरा अनुवाद डॉ. त्रिपाठी ने करके प्रेसकॉपी तैयार की, जिसे मुनिराजश्री ने आवश्यक सूचना के साथ मुद्रण की स्वीकृति प्रदान की। आज यह स्तोत्रावली हिन्दी अनुवाद सहित छंपकर पाठकों के करकमलों में आरही है। डॉ० रुद्रदेवजी त्रिपाठी ने बहुत परिश्रमपूर्वक यह कार्य सम्पादन किया है, तथा मुद्रण कार्य भी अपनी देखरेख में करवाया है, अतः उनके पूर्ण कृतज्ञ हैं। चरमतीर्थङ्कर परमोपकारी भगवान् महावीर के 25003 परिनिर्वाण वर्ष में प्रकाशित यह ग्रन्थ भावुक-भक्तों तथा विद्यानुरागी विद्वज्जनों को अवश्य ही आनन्दित करेगा। इसी प्राशा के साथ इसके प्रकाशन में शास्त्रदृष्टि अथवा मतिदोष से कोई क्षति रह गई हो, तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं और आशा करते हैं कि विद्वज्जन हमें सूचित करने की कृपा करेंगे तथा सुधार कर इसके अध्ययन-अध्यापन द्वारा श्रम को सफल बनाएँगे। मन्त्री श्रीयशोभारती जैन प्रकाशन समिति बम्बई
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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