________________ [76 साथ ही साथ गाने की उत्तम प्रक्रिया भी सम्पादित की। ___ विशेषतः नृत्य कला के प्रति भी आपका उतना ही आकर्षण था, अतः उसका ज्ञान भी प्राप्त किया और समय-समय पर विशाल सभाओं में उसके दर्शन भी कराए। इस प्रकार व्यावहारिक तथा धार्मिक शिक्षण, संगीत एवं नृत्यकला के उत्तम संयोग से आपके जीवन का निर्माण उत्तम रूप से हुआ और आप उज्ज्वल भविष्य की झाँकी प्रस्तुत करने लगे। परन्तु इसी बीच ज्ञानी सद्गुरु का योग प्राप्त हो जाने से आपके अन्तर में संयमचारित्र्य की भावना जगी और आपके जीवन का प्रवाह बदल गया, इस में भी प्रकृति का कोई गूढ़ संकेत तो होगा ही ? भागवती दीक्षा और शास्त्राभ्यास .. वि. सं. 1987 की अक्षय तृतीया के मङ्गल दिन कदम्बगिरि की पवित्र छाया में परमपूज्य आचार्य श्री विजय मोहन सूरीश्वर जी के प्रशिष्य श्री धर्मविजयजी महाराज (वर्तमान प्राचार्य श्री विजय धर्म सूरीश्वर जी महाराज) ने आपको भागवती दीक्षा देकर मुनि श्री यशोविजयजी के नाम से अपने शिष्य के रूप में घोषित किया। इस प्रकार केवल 16 वर्ष की अवस्था में आपने संसार के सभी प्रलोभनों का परित्याग करके साधयवस्था-श्रमण जीवन को स्वीकार किया / तदनन्तर पूज्य गुरुदेव की छाया में रहकर आप शास्त्राभ्यास करने लगे, जिसमें प्रकरणग्रन्थ कर्मग्रन्थ, काव्य, कोष, व्याकरण तथा अागमादि ग्रन्थों का उत्तम पद्धति से अध्ययन किया और अपनी विरल प्रतिभा के कारण थोड़े समय में ही जैनधर्म के एक उच्चकोटि के विद्वान् के रूप में स्थान प्राप्त किया। बहुमुखी व्यक्तित्व आपकी सर्जन-शक्ति साहित्य को प्रदीप्त करने लगी और कुछ