________________ 34 ] प्रस्तुत स्तोत्र काव्य, अलंकार, अर्थ, भाषा तथा विविध दृष्टि से किस प्रकार उत्तम कोटि के हैं, इस सम्बन्ध में मैं कुछ भी नहीं लिख पाया हूँ। इसके सम्पादक डॉ. त्रिपाठीजी ने उपोद्घात में इस पर कुछ लिखा है तथापि और कोई सुयोग्य विद्वान् इसकी समीक्षा करके भेजेगा तो गुजराती प्रावृत्ति में उसे अवश्य प्रकाशित करूंगा तथा गृहस्थ विद्वान् होगा तो उन्हें योग्य पुरस्कार देने की व्यवस्था भी संस्था की ओर से की जाएगी। / स्तोत्र के श्लोकों के टाइप जो प्रयोगों में लाये गये हैं, वे इनमे ड्योढ़े मोटे प्रयोग में लाने चाहिये थे किन्तु प्रेस में सुविधा न होने से वैसा नहीं हो सका। इस स्तोत्रावली में मुद्रित स्तोत्रों में से बहुत से तो यद्यपि इससे पूर्व भिन्न-भिन्न संस्थाओं के द्वारा पुस्तकों अथवा प्रतियों के आकार में छप चुके हैं तथा कुछ स्तोत्र गुजराती अनुवाद के साथ भी छपे हैं किन्तु इसमें कुछ स्तोत्र पहले बिलकुल प्रकाशित नहीं हुए थे और शेष इतस्ततः पृथक्-पृथक् मुद्रित थे उन समस्त स्तोत्रों को एक ही साथ अर्थसहित प्रकाशित करने का यह पहला अवसर है। उपाध्यायजी के स्तोत्र 'स्तोत्रावली' के नाम से प्रसिद्ध हैं अतः इस ग्रन्थ का नाम भी 'स्तोत्रावली' ही रखा गया है। बीमारी के कारण हास्पीटल में शय्याधीन होने से इस सम्बन्ध में विस्तृत परिचय लिखना सम्भव नहीं था अतः संक्षेप में ही उल्लेख किया है। मेरे सहृदयी मित्र डॉ० रुद्रदेव त्रिपाठी ने अनुवादक, अनुवाद संशोधक तथा सम्पादक के रूप में मुद्रणादि का समस्त उत्तरदायित्व ले