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________________ 24 ] ___ स्तुति किसकी की जाती है ? यह एक प्रश्न और उठता है, जिसका उत्तर है कि-देवताओं में अरिहंतों की स्तुति की जाती है। अरिहंतों को तीर्थङ्कर भी कहा जाता है। अरिहंत सर्वज्ञ होते हैं, सर्वदर्शी होते हैं, सर्वोत्तम चारित्र्यवान् तथा सर्वोच्च शक्तिमान् होते हैं। अन्य' शब्दों में कहें तो त्रिकालज्ञानी अर्थात् विश्व के समस्त पदार्थों को प्रात्मज्ञान द्वारा जाननेवाले तथा सभी पदार्थों को आत्म-प्रत्यक्ष से देख सकनेवाले तथा रागद्वेष से रहित होने के कारण सम्पूर्ण वीतराग और विश्व की समस्त शक्तियों से भी अनन्तगुरण अधिक शक्तिसम्पन्न होते हैं / तथा नमस्कार-सूत्र अथवा नवकारमन्त्र में पहला नमस्कार भी उन्हें ही किया गया है। अरिहंत अवस्था में विचरण करनेवाले व्यक्ति संसार के सञ्चालक, घाती-प्रघाती प्रकारके प्रमुख आठ कर्मों में से चार घाती कर्मों का क्षय करनेवाले होते हैं। इन कर्मों का क्षय होने से, अठारह प्रकार के दोष कि जिनके चंगुल में सारा जगत् फँसकर महान् कष्ट पा रहा है, उनका सर्वथा ध्वंस होने पर सर्वोच्चगुण सम्पन्नता का आविर्भाव होता है और विश्व के प्राणियों को अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अमैथुन तथा अपरिग्रह का उपदेश देते हैं और उसके द्वारा जगत् को मङ्गल एवं कल्याण का मार्ग दिखलाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को ही 'अरिहंत' कहते हैं। __ये सरिहंत जब तक पृथ्वी पर विचरण करते रहते हैं तब तक उन्हें अरिहंत के रूप में ही पहिचानते हैं। किन्तु ये सिद्धात्मा नहीं कहलाते / क्योंकि इस अवस्था में भी अवशिष्ट चार घाती कर्मों का उदय होता रहने से अल्पांश में भी कर्मादानत्व रहता है। पर जब ये ही शेष उन चारों अघाती कर्मों का क्षय करते हैं तब अन्तिम देह का स्याग होता है और आत्मा को संसार में जकड़ रखने में कारणभूत
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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