________________ 230 ] __ अनात्मवाद के अत्यन्त कठोर कुतर्कों से जो लोग पीडित हैं उनके लिये भगवान् महावीर का स्याद्वाद ही दोनों को निरोगिता प्रदान करनेवाली अनुग्रहपूर्ण औषधि है / अतः जो कठिन रोगी इस स्याद्वाद से तत्काल रोगमुक्त नहीं हो पाते उनकी चिकित्सा आदिवैद्य भगवान् धन्वन्तरि भी नहीं कर सकते // 105 // .(हरिणी छन्द) इदमनवमं स्तोत्रं चक्रे महाबल ! यन्मया तव नवनवैस्तर्कोद्ग्राहैभृशं कृतविस्मयम् / तत इह बृहत्तर्क ग्रन्थश्रमैरपि दुर्लभां, कलयतु कृती धन्यम्मन्यो “यशोविजय"श्रियम् // 106 // स्तुतिकार का कहना है कि हे महाबलशाली भगवन् ! मैंने नयेनये तर्कों के प्रयोग से इस आश्चर्यकारी और सर्वोत्तम स्तोत्र की रचना की है। इसलिये अपने को धन्य माननेवाला कोई भी विद्वान् तर्कशास्त्र के बड़े-बड़े ग्रन्थों का श्रमपूर्वक अध्ययन करने पर भी न प्राप्त होनेवाली यशो-विजय की श्री को इस स्तोत्र-ग्रन्थ में प्राप्त कर सकता है // 106 // (शालिनी छन्द) - स्थाने जाने नात्र युक्ति ब्रुवेऽहं, वाणी पाणी योजयन्ती यदाह / धृत्वा बोधं निविरोधं बुधेन्द्रा स्त्यक्त्वा क्रोधं ग्रन्थशोधं कुरुध्वम् // 107 // मैं इस बात को अच्छी तरह से समझता हूँ कि इस स्तोत्र में परमत का निराकरण और स्वमत के स्थापन की जो युक्ति प्रस्तुत की गई