________________ प्रकाशकीय-निवेदन आ 'नि:शेषसिद्धांतविचारयाय' नामना. ग्रंथने आगमोद्वारक ग्रंथमालाना 53 मा रान तरीके प्रगट करता अमने बहु हर्ष थाय छे। - आना प्रकाशनमा पूज्य गणिवर्यश्री अभयसागरनी महाराजे (हाल पंन्यास) आपेली प्रेसकोपीनो उपयोग को छे। __आनी प्रेसकोपी मुनिराजश्री लावण्यसागरजी म. करी हती भने संशोधन पू. गच्छाधिपति आचार्यश्री माणिक्यसागर सूरीश्वरजी म. नी पवित्र-दृष्टि नीचे शतावधानी (हाल पंन्यास ) श्री लाभसागरजी गणिए करेल छे / ते बदल तेओश्रीनो तेमज जेलोए आना प्रकाशनमां द्रव्य तथा प्रेसकोपी आपवानी सहाय करी छे ते बघा महानुभावाना आभार मानीए छीप / लि. प्रकाशक