________________ चिइवंदण थुइवुड्ढी उस्सम्गो साहु सासणसुराए / थयसरणपूयकाले ठवणा मंगलपुवा उ // 1133 // (भव्य.इत्यर्थः) विविहनिवेयणमारत्तिगाइ धूवथयवंदण विहिणा / जह सत्ति गीयवाइय नच्चणदाणाइयं चेव // 1142 // (नैवेद्यमित्यर्थः) 'विशेषपूजाया दिगादिगताया' इति / एकाचार्यस्य धर्मप्रतिबोधकादेः या पूजा सा दिगादिगता / जइणो वि हु दवत्थयभेओ अणुमोयणेण अस्थित्ति / पयं च इत्थ नेयं इय सिद्ध तंतजुत्तीए // 1210 // मोसरणे बलिमाई न चेह जं भयवयावि पडिसिद्धं / ता एस अणुण्णाओ उचियाण गम्मई तेण // 1213 // उचितानां गम्यते तेन द्रव्यस्तषः / अनेन बलिरुक्तः / अग्राहारः द्विजग्राम: / 'धण्णा निवेसिजइ धण्णा गच्छति पारमेयस्स / गंतुं इमस्स पार पार दुक्खाण वचंति' // 1348 // इयरे वाऽऽणा उ चिय गुरुमाइ निमित्तओ पइदिणं पि दोसं अपेच्च्छमाणा अडंति मज्झत्थभावेण // 1476 / / / प्रतिदिनमिति दोषः // सुयबज्झायरणरया पमाणयंता तहाविहं लोयं / . भुवणगुरुणो वरागाऽपमाणयं नावगछति // 1708 // // इति पञ्चवस्तुकस्य गाथा: पर्यायाश्च समाप्ता: //