SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 78 3 श्रावक-द्वादश व्रत छः जीवनिकाय__ पृथिवीकाय-मिट्टी, निमक आदि (खाने में या उपभोग में आवे) उसका पावसेर, आधसेर, सेर मण आदि वजन कायम करना। __ 2 अपकाय-जो पानी पीने में वा दूसरे उपयोग में आवे उसको मग दोमण या चाहिये उतना नियत करना। __3 तेउकाय-चूल्हा, अंगीठी, भष्ठी, प्राइमस, दीवा विगैरह से तेउकाय का आरंभ होता है इस वास्ते इन की संख्या नियत करना, एक दो या तीन घर के चूल्हे रखे, हलवाई के चूल्हे की छूट रक्खी हो तो वहां की मिठाई खा सके अन्यथा नहीं। 4 वायुकाय-हिंडाले और पंखे (अपने हाथसे या हुकम से) जितने चलते हों उनकी संख्या नियत करना, रुमाल से वा कागज से हवा लेना यह भी पंखे में शामिल है उसकी जयगा। 5 वनस्पतिकाय-हरा शाक, फलादि इतनी जातके खाने, घर संबंधी मंगावे उसकी गिनती तथा दो सेर तीन सेर का वजन करना। 6 त्रसकाय-चलते फिरते तमाम त्रस जीवों को मारने की बुद्धि से मारूं नहीं ऐसा नियम करना हर एक प्रवृत्ति में उपयोग रखना कारण 'उपयोगे धर्म' है। तीन कर्म असि कर्म-तलवार, बंदूक, तमंचा, चाकू, छुरी, केंची,
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy