________________ कार्य में कभी 'अपयश' नहीं मिलेगा। - अन्त में पाठकगण से निवेदन है कि वे इस पुस्तक को जिज्ञासावृत्ति से पढ़ें और इसमें लिखी हुई शिक्षाओं को अपने हृदय में स्थापित करें, निस्सन्देह इससे उनको अपने जीवन सुधार में मदद मिलेगी और ऐसा होने से ही इस पुस्तक के लेखक, प्रकाशक और सहायकों का परिश्रम भी सफल होगा। तथास्तु / - ता 26-5-36 ज्येष्ठशुदि 5 सं० 1993 ) मुनि कल्याणविजय