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________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह नाम भूम्यलीक है / श्रावक को चाहिये कि ऐसे झूठ से दूर रहे। ___(4) स्थापना मृषा-विश्वास पात्र जान कर अपने घर विना साक्षी विना लिखत-दस्तावेज के रखी हुई अमानत को दवा लेने की नीयत से 'मेरे पास नहीं है, मैं इस विषय में कुछ भी नही जानता' इस प्रकार अपने यहां रखी हुई चीज के विषय में नाकबूल होना इसको 'थापणमोसा'-स्थापना मृषा कहते हैं। (5) कूट साक्ष्य-झूठी शहादत / दो आदमी आपस में झगडते हों उस वक्त पक्षपात से या लोभ के वश हो कर झूठी गवाही देना 'कूट साक्ष्य' कहलाता है। व्रतधारी को झूठी गवाही कभी नहीं देना चाहिये। प्रतिज्ञा-" मैं देवगुरु-साक्षिक स्थूल असत्य भाषणका त्याग करता हूं। आजीवन कन्यालीकादि पांच प्रकार का असत्य न स्वयं बोलूंगा न दूसरे से बोलाऊंगा।" ___ अतिचार-१ सहसाभ्याख्यान-विना विचारे किसी पर झूठा इलजाम लगाना, जैसे-'तू चौर है, तू लोफर है' इत्यादि / व्रतधारी ऐमा किसी पर दोष न लगावे, अगर किसी में अवगुण हो तो भी उस की निंदा करना तक मना है तो झूठा इलजाम लगाना तो बड़ा ही अपराध है। - (2) रहस्याभ्याख्यान-खानगी बात करनेवालों पर झूठा इलजाम लगा कर कहना 'तुम अमुक बात करते हो'
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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