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________________ ___ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 495 (9) खाज खिने / (10) हाथ पग टेक कर बैठे। (11) निद्रा ले। (12) ठण्डी या मच्छरों के भय से सारा शरीर ढक कर बैठे। ऊपर लिखे 10 मनसम्बन्धी, 10 वचनसम्बन्धी और 12 कायसम्बन्धी सामायिक के दोष हैं, इनको सामायिक करने वालों को अवश्य वर्जेने का प्रयत्न करना चाहिये / 4 मुहपत्ति के 50 बोल (1) सूत्र अर्थ तय करी सद्दहुं ( दृष्टिपडिलेहणा) (3) समकिामोहनी, मिश्रमोहनी, मिथ्यात्वमोहनी परिहरूं। (3) कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग परिहरु / (3) सुदेव, सुगुरु, सुधर्म आदरूं। .. (3) कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरु।। (3) ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरं / (3) ज्ञानविराधना, दर्शनविराधना, चरित्रविराधना परिहरूं। (3) मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरूं / (3) मनदण्ड, वचनदण्ड, कायदण्ड परिहरूं। (3) हास्य, रति, अरति परिहरु (बायी भुजा पर मुहपत्ति फ़िरानी) (3) भय, शोक, दुर्गच्छा परिहरु ( दाहिनी भुजा पर)
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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