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________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 473 क्खाण फासिअं, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं, किट्टि, आराहिअं जं च न आराहि तस्स मिच्छामि दुक्कडं / " प्रत्येक पच्चक्खाण पारनेवालों को अंत में एक एक नवकार गिनना चाहिये। 14 पानी पीने और भोजन करने की विधि पौषधिक को तिविहार उपवास हो और पानी पीना हो तब ऊपर की विधि से पच्चक्खाण पार के आसन पर बैठ याचित अचित्त जल पीना चाहिये और जिस बर्तन से जल पिया हो उसे शुद्धवस्त्र से पोंछ लेना चाहिये और जल के बर्तन को ढंक कर रखना चाहिये / ___ जिसके आंचिल, निवी या एकाशन हो और अपने घर भोजन करने जाना हो उसको ईर्यासमिति पालते हुए जाना और घरमें प्रवेश करके "जयणा मंगल" ये शब्द बोल कर बैठने की जगह कटासन बीछा के बैठना, स्थापना स्थाप कर के इरियावही करना और खमासमण देकर 'गमणा गमणे' कहना चाहिये / फिर पाटला, थाली आदि भाजन देख साफ कर स्थिर आसन बैठ भोजन करे। उस समय मुनिराज का योग हो तो उनको दान देकर भोजन करे / आहार उतना ही ले जितना सुखपूर्वक खाया जा सके, क्योंकि भोजन उच्छिष्ट
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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