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________________ 1 देवदर्शनविधि जामें समावेश होता है।" स्वस्तिक द्रव्यपूजा कर रहे तब मंडपमें जाकर चोखा सुपारीकी डबिया खोल कर पाटले पर अक्षतका स्वस्तिक (साथिया) नीचे का दुहा बोलता हुआ करे / " अक्षतपूजा करतां थकां, सफल करुं अवतार / फल मागुं प्रभु आगले, तार तार मुझ तार // 1 // " उसके बाद"दर्शन ज्ञान चारित्रना, आराधनथी सार / सिद्धशिलानी उपरे, हो मुज वास श्रीकार // 2 // " इस तरह दुहा बोल कर चावलकी तीन ढगलियां तथा अर्ध चंद्राकार सिद्धशिलाका आकार बनावे / इनका भावार्थ भी पढिये ऊपर दिये गये साथिये के चार पांखडियां हैं जिनसे देव मनुष्य तिर्यश्च नरकरूप चार गतियों की सूचना होती है, साथिये के ऊपर चावल की तीन ढगलियां 1 ज्ञान 2 दर्शन और 3 चारित्र इन तीन रत्न की सूचना करती है, 3 ढगलि
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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