________________ _____ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 445 यह पूजा श्रीपार्श्वनाथजी के मन्दिर में महाराज साहिब श्रीकल्याणविजयजी की आज्ञानुसार मुनिमहाराज श्री सौभाग्यविजयजी और शेठ नगीनदासभाई के द्वारा पढाई गयी थी और गम के फिरती स्नात्रजल की जलधारा दी गयी थी। इसके अतिरिक्त टीका मांडने का कार्य भी आज ही हुआ / प्रतिष्ठा होने के बाद उस गांव के मन्दिरजी में चाहर गांवों के श्रीसंघ जो भंडार में अमुक रकम देते हैं उस को इस प्रदेश में 'टीका मांडना' अथवा 'टीका देना' कहते हैं, इसी रस्म को कहीं 'केसर मांडना' और कहीं 'भंडार मांडना' भी कहते हैं। बहुत जगह टीका प्रतिष्ठा के ही दिन ले लिया जाता है परन्तु गोल में प्रतिष्ठा के दूसरे दिन टीका लिया गया / क्योंकि यह रस्म अदा होने के बाद बाहर का संघ प्रायः चला जाता है, परन्तु यहां संघ को रोकना था अतएव यह रस्म दूसरे दिन अदा किया गया। टीका मांडने में भी मारवाड में पहले पीछे का रिवाज हुआ करता है यहां भी इस विषय में खासी चर्चा विचार के बाद टीका मांडना शुरू हुआ / गांव नगरों के संघों और व्यक्तियों की मिलकर टीके की कुल रकम 9000) नौ हजार हुई / ___ इस दिन प्रभात समय करीब 11000-18000 सतरह अठारह हजार मनुष्य गोल में थे और यह संख्या प्रायः