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________________ श्रोजैनशान-गुणसंग्रह 439 पर पुखणे की विधि के बाद बिम्ब मंडप में ले जाये गये / स्थापना की जगह पर सब कुछ कार्य पहले ठीक कर दिया गया था और तात्कालिक विधि उस वक्त्त कर करवा के शुभ - लग्न-नवांशक का समय आते ही दोनों मंदिरों में चढावे बोल कर आदेश लेने वालों के हाथों से जिनबिम्ब विराजमान कराये गये, ध्वजा, दंड, कलश चढवाये गये / यक्ष यक्षिणी स्थापित कराये गये / स्थापित जिनबिम्बादि पर मुनिमहाराज श्रीकल्याणविजयजी तथा सौभाग्यविजयजी के शुभ हस्तों से वासक्षेप हुआ / याचकों को विपुल दान दिया गया, तब गगनभेदी जयनाद करती हुई लोगों की भीड वहां से कुछ हटने लगी। * 32 याचकदान प्रतिष्ठा जैसे उत्सवों में 'याचकंदान' भी अपना खास स्थान रखता है। जब से अंजनशलाका-महोत्सव शुरू हुआ तभी से याचकदान भी जारी था। मंगलकलशस्थापना पर, ग्रहदिपालादिपूजन पर, अभिषेक पर, दीक्षामहोत्सव विधि आदि के प्रसंगों पर याचकदान करने की प्रवृत्ति परम्परा से चली आती है। इन प्रसंगों पर तो भोजक, ब्राह्मण और पूजक आदि को दान दिया जाता ही है, पर इस का खास प्रसंग तो प्रतिष्ठा
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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