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________________ 408 श्री गोलनगरीय-पार्श्वनाथप्रतिष्ठा-प्रबन्ध थे / अधिक भाग की इच्छा प्राचीन मन्दिर के पास गुरां साहब भक्तिसोमजी के नौहरे में यह मण्डप बनवाने की थी। कितनेक श्रावक कहते थे कि यहां जमीन कम है, भोजन मण्डप के निकट उत्तरी दरवाजे के बाहर मण्डप बनवाना अच्छा है, तब कतिपय सजनों की इच्छा महन्त साहब के मठ में मण्डप बनवाने की थी। आखिर यह सवाल महाराज साहब पर छोडा गया / आपने तीनों स्थानों को नजर में निकाला और मठ के बाहर का बाड़ा और उसके सामने वाली जमीन पसन्द की / यहां के मठपति महन्त श्री अजितभा. रतीजी बड़े ही गुणी और मिलनसार सञ्जन हैं। आप शैवधर्म के आचार्य होते हुए भी जैनधर्म के प्रशंसक और संघ के प्रति सद्भाव रखने वाले विद्वान् संन्यासी हैं / प्रतिष्ठा कराना निश्चित हुआ तभी से आपने यहां के संघ को अपनी तरफ से सभी तरह की मदद देने की सहानुभूति दर्शित की थी। महाराज साहब की पसन्दगी की जमीन पर प्रतिष्ठा मण्डप बनवाने के लिये आप की तरफ से तुरन्त आज्ञा मिल गयी / पूर्व तरफ की बाडे की भींत तुडवा कर जमीन बाहर के मैदान के साथ मिला दी गयी / वहां से कूडा कर्कट दूर करवा दिया गया। ऊपर ऊपर की मुर्दा धूली खुदवा कर बाहर फेंकवा दी गयी और उस जमीन पर सेंकडो गाडी ताजी शुद्ध मिट्टी और नदी की चालू डलवा कर मण्डप भूमि का तल भाग ऊंचा लिया गया।
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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