________________ प्रस्तावना मारवाड के विहारसे अनुभव हुआ कि इस प्रदेशके निबासियोंके लिये ऐसी पुस्तकोंकी खास जरूरत है जिन्हें सामान्य मनुष्य भी पढ़ सके और श्रावकधर्म तथा उससे संबन्धित अन्य सामान्य बातें सुगमतासे जान सके। जो कि इस आवश्यकता को किसी अंशमें पूरा करने वाली गुजराती भाषाकी पुस्तकें मिल सकती हैं, परन्तु इस प्रदेशवासियों के लिये गु. जराती पुस्तक उतनी उपयोगी नहीं हो सकती, जितनी कि हिन्दी हो सकती है, यह सब विचार करने पर यही निश्चय हुआ कि यहां के जैनगृहस्थों के लिये एक ऐसे ग्रन्थकी योजना होनी आवश्यक है जो हर प्रकारसे उपयोगी हो सके, हमने इस कार्य के लिये मुनिवर्यश्री सौभाग्यविजयजी को सूचना की और उन्हों ने परिश्रमपूर्वक एक गद्यपद्य का संग्रह कर के हमारे सुपुर्द किया जो "जैनज्ञान-गुणसंग्रह" नामक पुस्तक के रूपमें पाठकगण के सामने है। "जनज्ञान-गुणसंग्रह" एक 'संग्रह' ग्रन्ध है / इस में दो 'खण्ड और उनमें अनेक प्रकरण हैं / ... ग्रन्थ का पहला खण्ड हिन्दीगद्य में है जो अन्य ग्रन्थों के आधारसे मुनि श्रीसौभाग्यविजयजीने लिखा है, सिर्फ "धाभणागति अथवा नामाजोडा" और "रोगिमृत्युज्ञान" नामक